उत्तराखंड : जीना इसी का नाम है ? 98 परिवार का दर्द, जान हथेली पर रख कर सफर करने को मजबूर हैं

इन तस्वीरो को देख कोई भी डर जाए , तो सोचो जो इन हालातो से गुजर रहे है , जान हथेली पर रख कर उन पर क्या बीतती होगी
ये तस्वीर आजकल उत्तरकाशी जिले के सीमांत प्रखंड मोरी की है जहा दर्जनों गांव मैं पुल नाम की चीज़ नही साहव ओर फिर पुल के अभाव मैं ग्रामीणों की जिंदगी ट्रॉली या एक रस्सी के सहारे झूल रही है,


बता दे कि सांकरी -तालुका वन जीप मार्ग पर 4 गांव के लोग जान हथेली पर रख कर सफर करने को मजबूर हैं, पिछले 5 दिनों से मार्ग बन्द पड़ा है ओर कोई सुध लेने वाला नही । ओसला, गंगाड, पंवानी, ढाटमीर और सिर्गा के ग्रामीणों का देश दुनिया से संपर्क टूटा है, मोरी के हलारा गाड़ के जलस्तर बढने से ग्रामीण जान हथेली पर रख कर सफर कर रहे हैं, उत्तरकाशी के सुदूरवर्ती मोरी प्रखंड के नुराणु गाँव के ग्रामीण 2013 की आपदा के दंश आज भी झेल रहे है, गाँव के ग्रामीण गांव से सात किलोमीटर का सफर पैदल तय कर के इस तरह रूपिन नदी पार करने को मजबूर है। ग्रामीण एक दूसरे की मदद खुद करते दिखते है। मोरी ब्लॉक के सुदूरवर्ती नुराणु गांव के 98 परिवार छह साल बाद भी आपदा का दंश झेलने को मजबूर हैं। बरसात के समय ये परेशानी ग्रामीणों की और ज्यादा बढ़ जाती है जब नीचे उफनती नदी और ऊपर ट्रॉली रस्सियों के सहारे हर रोज ग्रामीण रूपीन नदी पार करने के लिए ट्रॉली के सहारे आवाजाही करते है, वहीं बरसात के दौरान नदी के उफान पर आने से दो महीने तक ग्रामीण गांवों में कैद हो जाते हैं दरअसल ट्रॉली के बाद ग्रामीणों को गाँव तक पहुँचने के लिए 8 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है, तस्वीर डरावनी है लेकिन इसके अलावा ग्रामीणों के पास कोई विकल्प भी नही बचता सहाब ।


आगे जो भी ख़बर को पढ़े वे खुद सोचे कि होना क्या चाइए।
क्या पहाड़ो को बचाने वाले ,पहाड़ो मैं रहने वालों की ज़िंदगी इसी तरह कठिन होनी चाहिए या इनकी ज़िन्दगी मैं सुधार होना चाहिए।
बताओ उत्तराखंड
क्या मेरे तेरे पहाड़ के लोग इसी तरह ज़िन्दगी जे जूझते रहेंगे या इन्हें कुछ राहत मिलेगी
क्या सिस्टम कभी सुधर पायेगा ।

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