अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में जोरदार हंगामा हुआ। सर्वोच्च अदालत में राजनीति का सुप्रीम मंजर दिखा। मुस्लिम पक्षकारों ने केस तैयार न होने के आधार पर सुनवाई का पुरजोर विरोध किया। मामले के राजनैतिक असर का हवाला देते हुए कहा कि यह सुनवाई का उचित समय नहीं है। आखिर इतनी जल्दबाजी क्या है? सुनवाई आम चुनाव के बाद जुलाई 2019 में होनी चाहिए। उनके वकीलों ने यहां तक विरोध किया कि अगर कोर्ट सुनवाई जारी रखेगा तो वे उसमें हिस्सा नहीं लेंगे और अदालत कक्ष छोड़ कर चले जाएंगे। करीब दो घंटे तक शोरशराबा और बहस चलने के बाद कोर्ट ने सुनवाई टाल दी और दस्तावेजों का आदान प्रदान पूरा होने के बाद मामला आठ फरवरी को फिर लगाने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने गत 11 अगस्त को ही अयोध्या मामले में अपीलों पर नियमित सुनवाई के लिए पांच दिसंबर की तिथि तय करते हुए कहा था कि दस्तावेजों का आदान-प्रदान पूरा कर लिया जाए। इस आधार पर पांच दिसंबर की सुनवाई स्थगित नहीं की जाएगी। 1सिब्बल की राजनीतिक दलील: मंगलवार को कोर्ट में धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द का मुलम्मा चढ़ा कर राजनीतिक और धार्मिक आस्था को बढ़ावा देने वाली दलीलें दी गईं। कानूनी दांवपेच पीछे थे, मुकदमे की सुनवाई के राजनीतिक नफा- नुकसान के आंकड़े आगे। मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन और दुष्यंत दवे ने सुनवाई रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया।