मैं सामान्य इंसान हॅू
गाॅव में अपने मकान की छत पर बैठे-2 मन में आये विचार प्रवाह को मैंने सोशल मीडिया में लोगों से साझा क्या किया, मेरे कुछ अति प्रेमी मुझ पर लठ्ठ लेकर टूट पड़े। कुछ दोस्तों ने तो इतने लठ्ठ अपने गाॅव में धान के पुआल पर या भट, मास, गहत के झाड़ पर दाना अलग करने के लिये नहीं चलाये होंगे, जितने मुझ पर चला दिये ‘‘भूड़-जस चूटि दैयी हो’’। कुछ दोस्त बार-2 यह आभास देते हैं, जैसे भष्ट्राचार, पलायन, शराब, बजरी की माफियागिरी, बेरोजगारी, राजधानी का उलझाव सब मेरे साथ पैदा हुआ है। पहले तो राज्य में राम-राज्य था। कुछ दोस्तों की नजर में चुनाव हारने के साथ मुझे खटिया पकड़ लेनी चाहिये थी। खटिया नहीं पकड़ी है, तो यह मेरा जघन्य अपराध है। सोशल मीडिया की यही खासियत है, जो आपकी ऐसी चीरफाड़ करता है, कि आपको अपनी असलियत तो समझ में आ ही जाती है, बहुधा चीरफाड़ करने वालों की नियत भी समझ में आ जाती है। ‘‘म्यौर गों’’ पर पोस्ट करने वाले सभी दोस्तों से मेरा वादा है, कि एक बार फिर मैं अपने घर की छत पर बैठकर आपके कोमेन्ट्स के आलोक में अपनी चीरफाड़ करूँगा कि कहाॅ मुझसे गलती रह गई। यदि आवश्यक हुआ तो उसे भी आपसे साझा करूंगा। गलती स्वीकारने में मैं कभी कृपण नहीं रहा हॅू।
कभी-2 हम मिथ्या आभासों से घिर कर स्वयं को महामंडित करने लगते हैं। नेताओं को विशेषतः हारे हुये नेता इस रोग से ज्यादा ही ग्रस्त रहते हैं। सम्भवतः मेरे साथ भी यही स्थिति है। मैं जब मुख्यमंत्री बना था, राज्य का लगभग 60 प्रतिशत भू-भाग इतिहास की सबसे बड़ी प्राकृतिक त्रासदी से ग्रस्त था। राज्य की सकल विकास दर 3 प्रतिशत वार्षिक पर आ गई थी, कृषि विकास दर शून्य से नीचे आ गई थी। आद्यौगिक क्षेत्र में भारी असमंजस्य था, व्यापार का वातावरण अपने न्यूतम स्तर पर था, राज्यों की रेटिंग में हम 23वें स्थान पर थे। प्रतिव्यक्ति औसत आय में वर्ष बारह के मुकाबले 10 हजार रूपये की कमी आ गई थी। राज्य की राजस्व वृद्धि दर माईनस 2 प्रतिशत आ चुकी थी, बिजली की प्राप्ति 13 घंटे प्रति दिन थी, पर्यटक जिनमें धार्मिक पर्यटक भी सम्मलित हैं, राज्य से मुख मोड़ चुके थे। राजनैतिक चुनौती ऐसी थी, कि मेरे आते ही केन्द्र से कांग्रेस की सरकार चली गई। राज्य में सरकार पूर्णतः पी0डी0एफ0 के विवेक पर निर्भर थी। भगवान ने भी मेरी ऐसी परीक्षा ली कि, मैं इस दौरान अपनी गर्दन भी तुड़वा बैठा।
बहुत सारे लोगों की नजर में पापी, नाकाम, धृतराष्ट्र, भ्रष्टाचारियों व दुराचारियों का संरक्षक, मतिभ्रमित, दगाबाज, सत्तामोही हरीश रावत आज सत्ता में नहीं है। परन्तु मेरे मुख्यमंत्री रहते भगवान की कृपा देखिये, राज्य दो वर्ष में ही भंयकर आपदा से उभर कर विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ चला। पर्यटन वापस आ गया है। राज्य की सकल विकास दर राष्ट्रीय विकास दर से पौने दो गुना अधिक है। प्रतिव्यक्ति औसत आय तिरसठ हजार रूपये से बढ़ कर एक लाख इक्हत्तर हजार से ऊपर हो गई है। बिजली चौबीस घंटे उपलब्ध है। सड़कों को उत्तर भारत के सर्वश्रेष्ठ आंतरिक मार्गों का दर्जा मिला है। इज इन डूईंग बिजनेस में राज्य 9वें स्थान पर है, सामाजिक कल्याण में खर्च में चौथे स्थान पर हैं। शिक्षा व उच्च शिक्षा के क्षेत्र में केरल के साथ नम्बर एक दो की प्रतियोगिता में खड़ा है। कृषि विकास दर 5 प्रतिशत व सेवा क्षेत्र की विकास दर 14 प्रतिशत है, राजस्व वृद्धि दर में हम देश में दुसरे स्थान पर हैं। वक्त ने मुझ जैसे छलिया को भी कुछ बताने को दे दिया।
अब अपने दोस्तों की बातें सुनकर लगता है, शायद ये सब राज्य की आवश्यकतायें थी ही नहीं। राज्य तो भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टोलरेन्स की प्रभाती व संध्या वन्दना सुनना चाहता है। आज राज्य में भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टोलरेन्स है, इसलिये सर्तकता विभाग की धर पकड़ घटकर 40 प्रतिशत पर आ गई है। मंत्रियों के परिवार पर जमीनों की खरीद-फरोख्त की बातें समाचार पत्र में छप रही हैं तो क्या हुआ, ये सब गढ़बड़ी तो उन्होंने पिछले जन्म में की है और अब ऐसे मंत्री गंगामयी Bharatiya Janata Party (BJP) में डुबकी लगाकर ईमानदार हो चुके हैं। मैंने चयन समिति की सर्वसम्मत्ति के आधार पर लोकायुक्त पैनल राज्यपाल महोदय को अनुमोदन के लिये भेजा आज इसका तस्करा नहीं हैं। लगभग दो साल से राज्य को लोकायुक्त नहीं मिला। यह भी हरीश रावत के खाते में दर्ज हो रहा है। श्री Trivendra Singh Rawat सरकार में शराब व खनन माफिया-शिष्टाचार माफिया हो गया है, क्योंकि अब डेनिस के साथ दबंग व चण्डीगढ़-अम्बाला की अवैध शराब धड़ल्ले से बिक रही है। मार्च 2017 में 45 रूपया टन बिकने वाली बजरी अब मात्र 125 रूपया क्विंटल बिक रही है। शायद यही भ्रष्टाचारमुक्त सदाचारी राज्य का उद्भव है। एक मैं हॅू कि, उल्लू की तरह दिन के उजाले को नहीं देख पा रहा हॅू।
मैंने 2014 में मुख्यमंत्री के रूप में अपनी दो प्राथमिकतायें गिनाई थी, राज्य को आपदा से उभारना व ऐसे उत्तराखण्डी पहलों को प्रारम्भ करना जिनको लेकर इस राज्य का निर्माण हुआ था। ऐसी पहलों में केवल एक पहल 9 नये जिलों का निर्माण का फैसला, मैं कतिपय कारणों से नहीं ले पाया जिसका मुझे दुख है। दस्तावेज सब तैयार हैं। नये जिलों की प्रारम्भिक आवश्यकता पटवारी हल्कों व तहसीलों को मैं गठित करके गया हॅू। आज #गैरसैंण जिस स्थिति में है, किसी की ताकत है कि, वह गैरसैंण की उपेक्षा कर सके। मैं वर्ष 2002 का मुख्यमंत्री नहीं था, जब सब कुछ नया था, कुछ भी गढ़कर बनाया जा सकता था। वर्ष 2015-16 तक #रामगंगा में बहुत सारा पानी बह गया है। यदि मैं एक दिन आदेश करता कि, #देहरादून का बस्ता बंद, चलो गैरसैंण। क्या यह सम्भव था। आज भी सम्भव नहीं है, जबकि गैरसैंण में विधानसभा भवन, आवास, सड़कें, हैलीपैड बन चुके हैं, सचिवालय भवन की नींव पड़ चुकी है। जिस गैरसैंण में 20 नये लोगों के रात प्रवास की व्यवस्था कठिन थी, आज तीन हजार नये लोग 10 किमी0 के दायरे में रह सकते हैं। #भराड़ीसैंण टाउनशिप बनाने हेतु यू-हुडा को काम सौपा गया है। गैरसैंण से सम्पर्क मार्गों के सुधार हेतु गैरसैंण रोड़ एवं अवस्थापना विकास निगम गठित किया गया है। सड़कों पर काम चल रहा है। निर्माण से सम्बन्धित सभी विभागों के कार्यालय वहाॅ खोले जा चुके हैं। मैंने एक सुजान दाई के तौर पर राजधानी रूपी बच्चे का प्रसव करवा दिया है। विधानसभा भवन बनाकर व सचिवालय की नींव डालकर, पक्ष-विपक्ष दोनों से गैरसैंण-2 कहलवा दिया है। कोई विरोधाभास नहीं उभरने दिया है। अब सब मिलकर नामकरण कर डालें। खैर कोई बात नहीं, यह काम मैं नहीं कर पाया, प्रसव मेहनताना मैंने खोया। अब यह काम दुसरे लोग कर सकते हैं। जागर लगाईये। एक दोस्त ने अच्छे जगरिये का नाम भी सुझाया है, मैं भी हुकांर दूंगा। अपने घर में रोज जागर लगाते हैं। अब गैरसैंण के आंगन में देवता नचाईये।
मैंने मान लिया कि, कुछ लोगों की नजर में #उत्तराखण्डियत के लिये मेरे द्वारा प्रारम्भ की गई सैकड़ों छोटी-बड़ी पहलें मिथ्या हैं, क्योंकि उन दोस्तों को इन पहलों को प्रारम्भ करने वाला पसन्द नहीं है। मेरे ऐसे दोस्तों की कोई तो पंसद रहा होगा। उनसे पूछो, उत्तराखण्डियत को क्यों भुला दिया, मैं ही अकेला केन्द्रीय मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं रहा हॅू। मुझसे भी बड़े-2 पदों पर बड़े-2 लोग लम्बे-2 समय तक रहे हैं। हिमालय पुत्र, पर्वत पुत्र, शिखर पुत्र, विकास पुरूष, युग पुरूष, अन्ना पुरूष, खिचड़ी पुरूष आदि-2 रहे हैं। सब ने बड़े-2 चैव्वे-छक्के लगाये हैं, यूंही लोगों के चहेते नहीं बने हैं। परन्तु अपनी घर की छत पर बैठकर अपने गाॅव में पसरे सन्नाटे पर किसी ने भी अपनी व्यथा साझा नहीं की है। मैंने देर में ही सही साझा तो की है न। अभी देर नहीं हुई है, अब साझा कर लीजिये न। लोगों ने गाॅव छोड़ दिया, घर संग्रहालय बना दिये, कुछ लोग वर्षों-2 से देहरादून में ही हैं। मैं शायद अकेला अपने गाॅव व पुश्तेनी घर में हॅू और भ्रम पाले हुये हॅू कि, मेरा भावनात्मक अन्तरबोध शायद आने वालों के काम आ जाय। चौदह वर्षों बाद गाॅव, गाड़-गधेरों, गडेरी, गहत, गलगल की सोच आधारित पहले धरती पर उतरी हैं क्या, उन्हें यूंही भूला दिया जायेगा।
हमारी प्रारम्भ की गई दर्जनों उत्तराखण्डी पहलें या तो बंद कर दी गई हैं या उनके स्वरूप का कचूमर निकाल दिया गया है। सीमान्त क्षेत्रों का पलायन रोकने के लिये आयोग गठित हो रहा है। परन्तु सीमान्त क्षेत्र विकास व पिछड़ा क्षेत्र विकास विभाग समाप्त किये जा रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों की #चकबन्दी का ढोल बज रहा है, परन्तु विभाग समाप्त हो गया है। मेरी पहलें, मेरी पार्टी के लिये वोट नहीं ला सकी, यह यर्थाथ है, परन्तु उन पहलों को घोषित रूप से नकारने की किसी में हिम्मत नहीं है। इसलिये अब तो लोग भांग की खेती की भी वकालत करने लगे हैं। कल शराब व्यवसाय को फल उत्पादन/खपत के साथ भी जोड़ेंगे, जैसा मैं जोड़ रहा था।
दोस्तों जो मुझसे नहीं निभा पाये, कहीं तो निभा लें। मुझे खुशी होगी। लोग मुझ पर जुऐं अवश्य खोजें, परन्तु उन्हें लोगों पर चिपके खटमल भी दिखने चाहिये। खैर गैरसैंण सहित उत्तराखण्डियत के लिये मैंने जो पहलें प्रारम्भ की हैं, #उत्तराखण्ड उनकी रक्षा करे या न करे, वक्त पर छोड़ता हॅू। परन्तु राष्ट्रपति शासन के खात्मे व अन्तिम रूप से दल-बदल पर आये निर्णय से उत्तराखण्ड के लोकतंत्र व राजनैतिक स्थिरता को ऐसा उपहार मिला है, जिसके लिये उत्तराखण्ड का इतिहास अपने इस बेटे को जरूर याद करेगा। अब कभी उत्तराखण्ड को राष्ट्रपति शासन या दल-बदल का दंश नहीं झेलना पड़ेगा। चाहे मैं उत्तराखण्डी राजनैतिक महाभारत का अभिमन्यु ही क्यों न सिद्ध होऊॅं, परन्तु महाभारत शुरू हो चुका है। इसमें जनसामान्य की गाॅव गाड़-गधेरों के इन्सान की विजय होगी। भरोसा रखें। साथ दे सकें तो,
आलोचना सहित आप सबका स्वागत है।
तमसो माॅं ज्योतिर्गमय!
(हरीश रावत)