मेरे लिए पीड़ादायक है कि मैं बड़े भाई असनोड़ा जी के लिए श्रद्धांजलि लिखूं : सतीश लखेड़ा की कलम से

मेरे लिए पीड़ादायक है कि मैं बड़े भाई असनोड़ा जी के लिए श्रद्धांजलि लिखूं ::
अभी भाई Prabhat Dhyani , भाई Suresh Bisht, और चारू दा Charu Tiwari की पोस्ट देखी तो विश्वास नहीं हुआ। पुष्टि के लिए भाई Indresh Maikhuri को फोन किया और इस अनहोनी का समाचार मिला। असनोड़ा जी ने लगभग साढ़े चार दशक पहले गैरसैण को कर्मभूमि बनाया, अतिशयोक्ति नहीं होगी उन्होंने यहां एक वैचारिक वातावरण वातावरण बनाया, वे यहां अखबार के पहले पाठक थे, पहले पत्रकार थे, पहले आंदोलन थे। गैरसैण जब विचार बना तो उसको सींचने वालों में बड़े भाई पुरुषोत्तम असनोड़ा जी भी थे। कितना पीड़ादायक है कि उन्हें ‘थे’ लिखना पड़ रहा है। वे अनेक सामाजिक अभियानों में आधार रहे, जनसरोकारों की धुरी रहे। राज्य के हर वैचारिक अभियान में वे मौजूद थे। नशा नहीं-रोजगार दो, वन आंदोलन, पृथक राज्य आंदोलन में उनकी उपस्थिति हम जैसे राजनीति के विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम थी जितना मैंने उन्हें निकट से समझा है देखा है ।

राजधानी को लेकर गठित हुई कौशिक समिति से लेकर दीक्षित आयोग तक असनोड़ा जी ने गैरसैण की व्यापकता और उपयोगिता को लेकर पुलिंदे के पुलिंदे लिखे। पहाड़ के बारे में सोचने समझने वाली हर धारा के गैरसैंण में असनोड़ा जी के एक ठौर थे। राज्य आंदोलन में ईंट-गारा रैली से लेकर दिल्ली रैली तक असनोड़ा जी पत्रकार भी थे और आंदोलनकारी भी। मुझे याद है 1989 का समय जब उत्तराखंड राज्य को लेकर विचार आंदोलन नहीं बना था तब चौखुटिया से लेकर बद्रीनाथ फिर गढ़वाल कुमाऊं अंचलों के लिए एक साइकिल यात्रा आयोजित की गई। उस नौ सदस्यीय दल का सबसे छोटा सदस्य मैं था। तब गैरसैण में असनोड़ा जी ने भोजन कराया और राज्य की अवधारणा को लेकर घंटे की बातचीत में यह बताया की उत्तर प्रदेश से अलग होकर किस तरह विशिष्ट पहचान का समृद्ध राज्य में बना सकते हैं। तब मुझ जैसा बालक जो घूमने की दृष्टि से उस दल में शामिल हुआ था उसके भीतर एक विचार का रोपण हुआ जो दर्शन संक्षेप में असनोड़ा जी ने दिया था।

भाई इंद्रेश मैखुरी ने बताया कि उन्होंने एक डेढ़ घंटा पूर्व ही देह त्याग की है, उनकी पार्थिव देह ऋषिकेश एम्स में है। लॉक डाउन के कारण उनके असंख्य शुभचिंतक उनके अंतिम दर्शन भी न कर पाने को विवश हैं। असनोड़ा जी के सानिध्य के सारे दृश्य नजर आ रहे हैं, मैं जब अखबार छोड़कर गैरसैंण में काम करने आया तो किराए का कमरा लेने तक असनोड़ा जी का मेहमान रहा। 2004 के राज्य आंदोलन में या फिर बाबा मोहन उत्तराखंडी के अनशनों में असनोड़ा जी अपरिहार्य संरक्षक की तरह थे। घोर वैचारिक विरोध के बाद भी वे मेरे लिए आदर्श बड़े भाई और संरक्षक की तरफ थे और रहेंगे। वह जितना स्नेह अपने छोटे भाई लीलाधर जी, भैरवदत्त जी और भोला Bhola Datt Asnora को देते थे, उतना ही मुझे भी। वह बेटी गंगा ही नहीं हम सब के मनोबल थे।

हाल ही में जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ा और उन्हें तत्काल एम्स ले जाने के लिए अजय भट्ट जी, अनिल बलूनी जी और विधायक नेगी जी सहित सभी शुभचिंतकों ने एकजुट होकर मुख्यमंत्री जी से कहकर उन्हें हेली से एम्स पहुंचाया। यह स्पष्ट करता है कि वह हमारी अमूल्य निधि थे। मैं इस समय Rajiv Lochan Sah, Kamla Pant जी, शेखर पाठक जी, पीसी तिवारी जी, Arun Kuksal ,गैरसैण वासियों, आंदोलनकारियों सहित राज्य की सभी धाराओं के महानुभावों की पीड़ा में सम्मिलित हूं, कि हमने गैरसैंण में विचार के रूप में, परिवार के रूप में एक महत्वपूर्ण सदस्य खो दिया है। माँ समान लीला भाभी को घर के सभी सदस्यों को ईश्वर इस असह्य पीड़ा को सहन करने की शक्ति दे।
अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि भाई साहब👏👏👏

सतीश लखेड़ा जी की फेसबुक वॉल से

 

इससे  पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लिखा है कि वरिष्ठ पत्रकार, राज्य आंदोलनकारी और उत्तराखंड के जन सरोकारों के मर्मज्ञ श्री पुरुषोत्तम असनोड़ा जी के आकस्मिक निधन पर आहत हूँ। परम पिता परमेश्वर पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे एवं उनके परिजनों को इस असह्य पीड़ा को सहने की शक्ति दे।

!! ॐ शांति शांति शांति !!
तो वही उत्तराखंड के सभी राजनेताओ ने, राज्य आंदोलन करियो ने उत्तराखंड के जन सरोकारों के मर्मज्ञ श्री पुरुषोत्तम असनोड़ा जी के आकस्मिक निधन पर गहरा दुःख प्रकट किया।

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