
उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद एवं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख पहाड़ पुत्र अनिल बलूनी को पहाड़ पुत्र इसलिए ही बोलता उत्तराखण्ड कहता है ओर मानता है क्योंकि वे पहाड़ के गाँव गाँव की तस्वीर बदलने के लिए सकल्प लेकर काम कर रहे है लगातार प्रयासरत है पिछले एक साल के दौरान आपने देख ही लिया होगा कि पहाड़ पुत्र अनिल बलूनी ने क्या क्या कार्य कर दिखाए ।बतौर राज्य सभा सांसद ।
अब देखो ना अनिल बलूनी ने कुछ समय पहले जिला अधिकारी पौड़ी को पत्र लिखकर कोटद्वार की मतदाता सूची से उनका नाम उनके पैतृक ग्राम नकोट, कंडवालस्यूँ, विकासखंड कोट, पौढ़ी गढ़वाल स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था। जिस पहल की आज सब जगह तारीफ हो रही है ओर बलूनी की लोकप्रियता से पहाड़ भी गद गद है
बता दे कि पहाड़ पुत्र अनिल बलूनी ने कहा है कि शिक्षा और रोजगार के कारण भारी संख्या में उत्तराखंड से पलायन हुआ है। धीरे -धीरे गांव से प्रवासियों के संबंध खत्म हुए है, जिस कारण राज्य की संस्कृति रीति -रिवाज, बोली -भाषा भी प्रभावित हुई है जिसका संरक्षण आवश्यक है।

सांसद अनिल बलूनी कह चुके है कि उन्होंने स्वयं अनुभव किया कि पलायन द्वारा शिक्षा, रोजगार तो प्राप्त कर सकते है, किंतु अपनी जड़ों से जुड़े रहने की कोशिश प्रत्येक प्रवासियों को करनी चाहिए ताकि हमारी भाषा और संस्कृति रीति रिवाज त्योहार संरक्षित रह सकें।
पहाड़ पुत्र बलूनी ने ये भी कहा है कि गांव से जुड़कर ही व्यवहारिक रूप से हम परिस्थितियों को समझ सकते हैं। ओर अब इसी कड़ी मे वे लगातार पलायन पर कार्य करने वाली संस्थाओं और व्यक्तियों से जुड़कर इस अभियान को आगे बढा रहे है।
इससे पहले
सांसद अनिल बलूनी ने कहा है कि उन्होंने निर्जन बौरगांव को गोद लेकर अनुभव किया है कि बहुत समृद्ध विरासत की हम लोगों ने उपेक्षा की है। हमने पलायन को विकास का पर्याय मान लिया है। अगर हर प्रवासी अपने गांव के विकास की चिंता करें और गांव तथा सरकार के बीच सेतु का कार्य करें तो निसंदेह हम अपनी देवभूमि को भी सवार पाएंगे और अपनी भाषा, संस्कृति और रीति-रिवाजों को सहेज पाएंगे।
ये सोच और किसी की नही बल्कि आपके बेटे, भाई, अनिल बलूनी की है। और इसी सोच और निष्ठा से बतौर सांसद कार्य करने वाले पहाड़ पुत्र अनिल बलूनी की बढ़ती लोकप्रियता से उनके राजनीतिक विरोधियों के पसीने छूटने लगे है।
वही राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख पहाड़ पुत्र अनिल बलूनी की अपना वोट, अपने गांव मुहिम को अब भारी जनसमर्थन मिल रहा सोशल मीडिया में अब तक बड़ी सँख्या में लोग इस मुहिम से जुड़ चुके हैं । तो प्रवासी उत्तराखण्डी भी बलूनी की इस मुहिम की खूब सराहना करते नही थक रहे हैं। इन सबके बीच कही प्रसिद्ध लोगो ने बलूनी की मुहिम से खुद को जोड़ते हुए इसे उत्तराखंड के लिए सार्थक बताया है।
अभी हाल ही मे कुछ दिन पहले उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने भी मीडिया के सामने आकर खुल कर अनिल बलूनी की पहल की तारीफ की है मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि हमारे राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी ने जो अपना वोट अपने गाँव मुहिम चलाई है।वो शानदार मुहिम है मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने कहा कि मै समझता हूँ कि ये पहल भविष्य के लिए कारगर साबित होगी। ओर इस पहल के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने अनिल बलूनी को बधाई भी दी। ओर यही नही राज्य के सभी मंत्री अधिकारी ,यहां तक कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने भी अनिल बलूनी की पहल का दिल से स्वागत करते हुए उनकी मुहिम मे जुड़ चुके हैं।
खेर अब आज की बात पहाड़ पुत्र अनिल बलूनी ने आज वो काम किया है जिसे आप या हम या कोई बड़ा अफसर जो गढ़वाली हो वो भी कभी कभी बोलने से कतराता है।
ओर अगर बोलता है तो सिर्फ अपने लोगो के बीच मे, अपने परिवार के सामने बस यही तक ना इससे आगे हम चुप हो जाते है
पर ओर अपने उत्तराखंड के बाहर तो स्याद बहुतो को गढ़वाली बोलने या अपने को गढ़वाली कहने मे भी शर्म आती होगी ये बात भी कुछ लोगो पर सटीक बैठती है।
पर यहां नही क्योंकि ये पहाड़ पुत्र है
जो आज बोले ओर संसद मे तालिया गूँजी ।
सुनो उत्तराखंड
महोदय मैं मोदी सरकार के नोटबन्दी और जीएसटी जैसे दूरगामी निर्णयों और प्रभावों के विषय में एक गढ़वाली मुहावरा कहना चाहूंगा –
दानू सयाणु कु बोल्यूँ अर औलूँ कु स्वाद बाद मा पता चलदु- अनिल बलूनी
अर्थात बुजुर्गों की सीख और आंवले के स्वाद का असर बाद में पता चलता है।
जी हां ये बोला गया आज गढ़वाली मै संसद मे
आपके पहाड़ पुत्र अनिल बलूनी के द्वारा ओर फिर सब ने डेस्क थप थपा दिया । वो इसलिए नही क्या बोला वो बाद की बात बल्कि इसलिए कि उत्तराखंड की गढ़वाली भाषा मैं कहा को कहा।
एक पहल की है शरुवात की है बलूनी ने
वरना हमारे उत्तराखंड के पूर्व कही मंत्रियों की बात करे या आज के हमारे उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री
सतपाल महाराज जी तो लगातार भाषाओं को लेकर लगातार चर्चा तो करते रहे कि गढ़वाली कुमाऊनी को अनुसूची में डाला जाए ओर हम खुश भी हो जाते है कि हमारे महाराज जी ने बढ़िया बात कही भाई पर उन्होंने क्या कभी पार्लियामेंट में कभी भी गढ़वाली और कुमाऊंनी में बात की अगर की हो तो हमको बता देना हम उनकी भी तारीफ करेगे यहां पर सवाल सिर्फ महाराज जी का ही नही बल्कि कही उत्तराखंड के बड़े नेताओ का है जिन्हें जहा जो कहना चाइये वहां खामोश हो जाते है।और फिर बल चुनाव के दौरान वोट मागते समय गढ़वाली, कुमाऊनी मै पहाड़ में बात भी ओर वोट भी मागते दिखाई देते है।
बहराल सारी बातों पर विराम लगा कर इतना कहते है कि हमारे लिए
यह गर्व का विषय है कि भारत की संसद में गढ़वाली भाषा गूंजी
इसके लिए पहाड़ पुत्र अनिल बलूनी जी आपका धन्यवाद ।आपको सुभकामनाये।
इस उम्मीद के साथ कि आप हमारी भाषा और संस्कृति को संजोय रखने के लिए एक नई लाइन खिचेगे।