Friday, March 29, 2024
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N.d तिवारी को आप आज पूर्व सीएम नही पूर्व पीएम कहते अगर होता ये तो ! सबसे बड़ा खुलासा हर हकीकत ख़बर को रीड करे

 

एनडी तिवारी के निधन पर तीन दिन का राजकीय शोक, सीएम ने कहा नहीं भूला जा सकता उनका योगदान।

पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के निधन पर उत्तराखंड सरकार ने तीन दिन का राजकीय शोक घोषित कर दिया है। पूर्व सीएम के सम्मान में 18 अक्तूबर से अगले तीन दिन तक राजधानी और जिला मुख्यालय में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। कोई भी शासकीय मनोरंजन के कार्यक्रम नहीं होंगे। जो कार्यक्रम पहले से तय हैं, उन्हें रद्द घोषित किया जाएगा।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने शोक संदेश में कहा कि उत्तराखंड तिवारी के योगदान को कभी नहीं भुला पाएगा। नवोदित राज्य को आर्थिक और औद्योगिक विकास की रफ्तार से अपने पैरों पर खड़ा करने में तिवारी जी ने अहम भूमिका निभाई। तिवारी जी देश के वित्त मंत्री, उद्योग मंत्री और विदेश मंत्री जैसी अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। वे सदैव दलगत राजनीति से ऊपर रहे। उन्होंने कहा कि तिवारी जी का निधन मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। सीएम ने उनकी आत्मा की शांति तथा शोकाकुल परिजनों को सांत्वना प्रदान करने की ईश्वर से कामना की।
राष्ट्र व समाज को अपूरणीय क्षति
उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी का निधन राष्ट्र एवं समाज की अपूरणीय क्षति है। तिवारी जी एक लोकप्रिय जन नेता और कुशल प्रशासक थे। दो प्रदेशों के मुख्यमंत्री रहने के साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार में भी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभाया।
– बेबी रानी मौर्य, राज्यपाल

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख और राज्यसभा सांसद  अनिल बलूनी ने  प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी जी के निधन पर गहन शोक प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि तिवारी जी के निधन से प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति में जो शून्य उभरा है उसकी भरपाई नहीं हो पाएगी। स्वर्गीय तिवारी ने देश के स्वाधीनता संग्राम से लेकर देश की राजनीति और लोकतंत्र को पुष्ट करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

 

पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी जी का निधन राष्ट्र एवं प्रदेश के लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी नवोदित उत्तराखंड के लिए बतौर मुख्यमंत्री विशेष भूमिका रही। दो प्रदेशों के मुख्यमंत्री रहने के अलावा उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कई अहम जिम्मेदारियों को सफलता पूर्वक निभाया।
– अजय भट्ट, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष

तिवारी जी का जाना एक अपूर्णीय क्षति है। उत्तराखंड उनको हमेशा याद रखेगा। वे विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे। विद्वता उनमें कूट-कूट कर भरी थी। जिस पद पर रहे उसे उन्होंने सुशोभित किया। उनका जाना बहुत दुखद समाचार है। यह आशा थी कि वे स्वस्थ होंगे और पहले के अंदाज में लोगों के बीच में आएंगे। दुर्भाग्य से ऐसा न हो सका।
– हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री व महासचिव एआईसीसी

बहुत दुखद घटना है। राजनीति का एक युग खत्म हुआ। इस क्षति की भरपाई कभी संभव नहीं हो पाएगी। उत्तराखंड के लिए यह बहुत बड़ा झटका है। उनका योगदान ये प्रदेश कभी भूल नहीं पाएगा। उन्होंने ही इस प्रदेश के विकास की नींव रखी।
– प्रीतम सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस

देश ने एक महान जनसेवक और राष्ट्रभक्त खो दिया। एक युग का अंत हो गया। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के औद्योगिक विकास की नींव उन्होंने रखी थी। ये इस प्रदेश का सौभाग्य था कि उनके जैसा अनुभवी व्यक्ति मुख्यमंत्री बनकर आया। योजना का उन्होंने जो आकार बनाया और नींव डाली, उसी पर उत्तराखंड का विकास हो रहा है। संकीर्णता से ऊपर उठकर उन्होंने राष्ट्र और समाज की सेवा की।
-विजय बहुगुणा, पूर्व मुख्यमंत्री

भारत की राजनीति का एक युग समाप्त हुआ। जो विनम्रता और शालीनता का युग था, उसका प्रतिनिधित्व एनडी तिवारी करते थे। राजनीतिक शिष्टाचार क्या होता है, ऐसा कोई नेता था न कभी होगा। उत्तराखंड के लोगों के लिए आज का दिन दुर्भाग्य का है। उत्तराखंड से एक व्यक्ति निकला और विश्व पटल पर छा गया। उन्हें हम लोगों ने प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। उन्होंने 1991 में चुनाव हरा दिया। उसके लिए हम दोषी हैं।
– किशोर उपाध्याय, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस

तिवारी जी का निधन उत्तराखंड और देश की अपूर्णीय क्षति है। वे भारतीय राजनीति के पुरोधा थे। उन्होंने जीवन पर्यंत समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर कार्य किया। उनके योगदान को यह प्रदेश सदैव याद रखेगा।
– प्रेमचंद अग्रवाल, अध्यक्ष, विधानसभा

तिवारी प्रदेश और देश के मूर्धन्य नेता थे। एक सामान्य परिवार में पैदा हुए। राजनीति में उन्होंने अपने विलक्षण व्यक्तित्व की महानता को दिखाया। वे मेरे व्यक्तिगत संरक्षक व मित्र थे। इस प्रदेश के लिए उन्होंने अच्छा काम किया। सबको साथ लेकर चलने की उनमें अद्भुत कला था।
– भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद ।
नौ बार एमएलए, तीन बार सांसद, दो बार केंद्रीय कैबिनेट मंत्री एक बार राज्यपाल, चार बार यूपी और एक बार उत्तराखंड में सीएम रह चुके उत्तराखंड के दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी का व्यक्तित्व और लंबा राजनैतिक कार्यकाल बेहद विशाल रहा।

देश में कांग्रेस ही नहीं बल्कि सपा, बसपा और भाजपा में भी उनसे राजनीतिक दीक्षा और प्रेरणा लिए लोगों की भरमार है।

प्रदेश भाजपा के भी तमाम बड़े नेता तिवारी के पुराने चेले रहे हैं, इनमें यशपाल आर्या, विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज, शैलेंद्र मोहन सिंघल, महेंद्र अधिकारी, सुबोध उनियाल सहित तमाम नेता शामिल हैं। भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक भी भाजपा में रहने के बावजूद तिवारी के खासमखास रहे हैं।

इन्हीं सब के भरोसे तिवारी उत्तराखंड में पांच साल निश्चिंत होकर सरकार चलाने में सफल रहे थे और राज्य गठन के 16 वर्षों में अकेले ऐसे सीएम रहे जो पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर सके।

हालांकि मार्च 2006 में उन्होंने इस्तीफे की पेशकश की थी जो स्वीकार नहीं की गई। सपा नेता मुलायम सिंह यादव हमेशा उनके घनिष्ठ रहे, अटल बिहारी वाजपेयी, राजनाथ सिंह, शरद पवार सहित अन्य दलों के नेताओं से उनके प्रगाढ़ संबंध रहे।

सतपाल महाराज और अर्जुन सिंह के साथ तो तिवारी ने 1996 में कांग्रेस छोड़कर अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस (टी यानी तिवारी) पार्टी भी बनाई थी और इस पार्टी के कोटे से महाराज को केंद्र में रेल राज्यमंत्री बनवाया था। बाद में सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद वे फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
एक दौर था जब जिस पर तिवारी हाथ रख देते राजनीति में उसका सितारा बुलंद हो जाता था। राजनीति में अनाम से रहे स्व. सत्येंद्र गुड़िया को सांसद और पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में पीडीएफ के हरीश दुर्गापाल को बमेटा बंगर के ग्राम प्रधान से सीधे विधायक बनवा देने का श्रेय भी तिवारी को है।

हल्द्वानी, लालकुआं, रामनगर, काशीपुर, जसपुर, किछा, कालाढूंगी, भीमताल नैनीताल सहित यूपी के बहेड़ी (बरेली), लखनऊ और दिल्ली तिवारी की कर्मस्थली रहे।

यह संयोग है कि 1952 में तिवारी मात्र 27 वर्ष की उम्र में यूपी में सबसे कम उम्र के विधायक बने थे और 92 वर्ष की आयु तक सर्वाधिक वयोवृद्ध सक्रिय राजनीतिज्ञ भी रहे।
तिवारी ऐसे अकेले नेता थे जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहे
1976-77, 1984, 85 और 1988-89 में चार बार यूपी में और एक बार 2002 से 2007 तक उत्तराखंड में सीएम रहे। तिवारी ऐसे अकेले नेता थे जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहे।

तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर 1925 को नैनीताल के बल्यूटी गांव में हुआ था। सात वर्ष की आयु में उनकी माता चंद्रा देवी का निधन हो गया था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पदमपुरी, हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल में हुई।

उन्होंने नैनीताल के सीआरएसटी से हाई स्कूल प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया और उसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए किया, जिसमें वह टॉपर रहे। फिर वहीं से एलएलबी भी किया। 1947 में वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे।

जब 800 वोटों की हार ने रोकी एनडी तिवारी के प्रधानमंत्री बनने की राह

राजनीति में तमाम उतार चढ़ाव देख चुके और राष्ट्रीय राजनीति में अहम स्थान और योग्यता रखने के बावजूद नारायण दत्त तिवारी के जीवन में जब प्रधानमंत्री बनने का वक्त आया तब राजनीति में नए आये बलराज पासी से पराजित होकर उन्हें यह मौका गंवाना पड़ा था।

उत्तराखंड में सीएम बनने पर कांग्रेस के कुछ लोगों का भी तिवारी को भारी विरोध झेलना पड़ा था। उम्र के अंतिम दौर लगभग 90 वर्ष की उम्र में पुत्र रोहित को राजनीति में स्थापित करने और भाजपा से हल्द्वानी विधानसभा का टिकट दिलाने के लिए शायद जीवन का सबसे बड़ा राजनीतिक संघर्ष करना पड़ा, लेकिन उसमें भी वांछित सफलता नहीं मिल सकी।

इसके लिए उन्होंने दिल्ली जाकर अमित शाह से मुलाकात की और भाजपा को समर्थन भी दिया।
अपने ही गढ़ रहे बहेड़ी से तिवारी पिछड़ गए थे
1991 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान 21 मई 91 को श्रीपेराम्बुदूर में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की बम विस्फोट में हत्या हो जाने के बाद पूरे देश में कांग्रेस के प्रति भारी सहानुभूति उमड़ पड़ी थी और कांग्रेस भारी बहुमत से चुनाव जीती भी।

यह संयोग ही रहा कि तत्कालीन नैनीताल बहेड़ी लोकसभा सीट पर नैनीताल जिले की सभी विधानसभा सीटों पर आगे रहने के बावजूद अपने ही गढ़ रहे बहेड़ी से तिवारी पिछड़ गए और 800 वोट से बलराज पासी से चुनाव हार गए थे।

राजीव गांधी की हत्या और गांधी परिवार से कोई दावेदार न होने के कारण इस बार कांग्रेस से लाल बहादुर शास्त्री के बाद एक बार फिर किसी गैर गांधी का पीएम बनना तय था और इसके लिए तिवारी का नाम उनकी योग्यता, व्यवहार और सर्व स्वीकार्यता के चलते सुनिश्चित माना जा रहा था। लेकिन उनके चुनाव हार जाने के कारण वह इस दौड़ में शामिल तक न हो पाए और पीवी नारसिम्हा राव अप्रत्याशित रूप से पीएम बन गए।
सिडकुल से आईटी पार्क तक खींचा विकास का खाका
राज्य गठन के 18 सालों में उत्तराखंड के विकास की जो तस्वीर दिखाई दे रही है, उसमें रंग बेशक बाद में आई सरकारों ने भरे हों। मगर खाका एनडी तिवारी के कार्यकाल में ही खींचा गया।

विशेष औद्योगिक पैकेज का एनडी तिवारी ने अपने राजनीतिक अनुभव और प्रभाव के दम भरपूर लाभ उठाया और उत्तराखंड को औद्योगिक राज्य की श्रेणी में ला खड़ा किया।

उन पर राज्य की बेशकीमती कृषि भूमि को तबाह करने के भी आरोप लगे। मगर आलोचनाओं और विरोधों से बेफिक्र एनडी ने देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में औद्योगिक अवस्थापना की शुरुआत की।
एनडी ने हर्बल, पावर और उद्यान के क्षेत्र में भी तरक्की की संभावनाएं टटोली
उनकी दृष्टि में दून घाटी में हैदराबाद की तर्ज पर सिलिकॉन सिटी बनने की अपार संभावनाएं थीं। माइक्रो सोफ्ट कंपनी के संस्थापक बिल गेट्स जब भारत आए तो एनडी ने उनसे दून को आईटी हब में बदलने की पेशकश की थी।

सहस्त्रधारा में आईटी पार्क दरअसल एनडी की उसी सोच की देन है। देश-दुनिया का चप्पा-चप्पा छान चुके एनडी जानते थे कि आने वाला दौर आईटी का है।

एनडी के कार्यकाल में ही तकनीकी विवि, उत्तराखंड संस्कृत विवि और दून विवि की नींव रखी गई। एनडी ने हर्बल, पावर और उद्यान के क्षेत्र में भी तरक्की की संभावनाएं टटोली। उनके दौर में करीब 37

00 मेगावाट की बिजली परियोजनाओं पर प्रदेश सरकार ने फोकस किया। भौगोलिक चुनौतियों को देखते हुए ही उन्होंने आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण की स्थापना की।
👉उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पं. नारायण दत्त तिवारी जी के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त करता हूं।
👉ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति व परिजनों को दुःख सहने की प्रार्थना करता हूं।
👉श्री तिवारी के जाने से भारत की राजनीति में जो शून्य उभरा है, उसकी भरपाई कर पाना मुश्किल है।
👉तिवारी जी देश के वित्त मंत्री, उद्योग मंत्री और विदेशमंत्री जैसी अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं।
👉 उत्तराखंड श्री तिवारी जी के योगदान को कभी नहीं भुला पाएगा |
👉नवोदित राज्य उत्तराखंड को आर्थिक और औद्योगिक विकास की रफ़्तार से अपने पैरों पर खड़ा करने में तिवारी जी ने अहम भूमिका निभाई।
*तिवारी जी को विनम्र श्रद्धाजलि* !
ऊँ शान्ति !ऊँ शान्ति! ऊँ शान्ति!

साभार अमर उजाला

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