
आपको मालूम नही तो बता दू की गलवां घाटी में शहीद उत्तराखंड के शहीद हवलदार बिशन सिंह पहली बार साथ में बेटी का जन्मदिन मनाने का वादा पूरा नहीं कर पाए।
क्योंकि जन्मदिन के तीन दिन पहले ही पिता की शहादत की खबर घर आई।
उनकी बेटी मनीषा इंटर की छात्रा है। ओर ड्यूटी पर रहने के कारण उसके किसी भी जन्मदिन पर पिता साथ नहीं रहे। मगर इस बार बिशन सिंह ने अपनी लाडली से वादा किया था कि चाहे जो भी परिस्थितियां हों, इस बार वह बेटी का जन्मदिन उसके साथ ही मनाएंगे।
इसके लिए उन्होंने जुलाई में छुट्टी लेकर घर पहुंचने की बात कही थी।
बात दे कि मनीषा का जन्मदिन 18 अगस्त को होता है।यानी आज
ओर मनीषा अपने पिता को फोन कर उनके वादे को याद दिलाती रहती थी। तो पिता भी बेटी की खुशी में शामिल होने का निश्चय कर चुके थे लेकिन विधि को यह मंजूर नहीं था
जानकारी है कि इलाज के दौरान बिशन सिंह की अपने बच्चों और भाइयों से फोन पर लगातार बात होती रहती थी, लेकिन अगस्त में जब से वह चंडीगढ़ में भर्ती हुए बात कम होने लगी। आठ, नौ अगस्त को छोटे भाई जगत सिंह उनसे मिलने चंडीगढ़ भी गए। बेटे मनोज ने बताया कि पिता से उनकी फोन पर अंतिम बार बात 13 अगस्त को हुई थी। तब उन्होंने ठीक होकर जल्द आने की बात कही थी।
बता दे कि हवलदार के चचेरे भाई राजेंद्र सिंह ने बताया कि छह अगस्त को उन्होंने भाई को व्हॉट्सएप मैसेज किया था, जिसके जवाब में उनके भाई ने अवाज रिकॉर्ड करके भेजी थी। उसके अगले दिन भी मैसेज किया तो कोई जवाब नहीं आया। तब से फिर बात नहीं हो सकी। हालांकि शहीद के भाई जगत सिंह से उसके बाद बात हुई तो उन्हें चंडीगढ़ बुला लिया। जगत सिंह ने बताया कि दो तीन घंटे वह वहां रहे लेकिन मिलने का बहुत कम समय मिला
बता दे कि शहीद बिशन सिंह रिटायरमेंट के बाद हल्द्वानी में मकान बनाना चाहते थे। इसके लिए जमीन भी खरीद ली थी।
बिशन सिंह करीब ढाई साल पहले अपनी पत्नी सती देवी और दो बच्चों मनीषा और मनोज को लेकर हल्द्वानी आ गए थे। यहां वह किराए पर रह रहे थे। बेटे मनोज ने बताया कि उनके पिता गाड़ी भी खरीदना चाहते थे ताकि वह परिवार समेत अपने पैतृक गांव जा सकें।
ये भी जाने की शहीद बिशन सिंह के पैतृक गांव माड़ीधामी में हर घर से एक से दो सदस्य सेना में हैं या रिटायर हो चुके हैं। ओर बिशन सिंह के परिवार के दस सदस्य सेना से जुड़कर देश की सेवा कर रहे हैं। शहीद के चचेरे भाई राजेंद्र सिंह बताते हैं कि बिशन सिंह के चाचा, ताऊ, भाई भतीजे सब मिलाकर एक सेक्शन यानी 10 लोग सेना में हैं। पांच वर्तमान में ऑन ड्यूटी पर हैं। चार रिटायर हो चुके हैं। बिशन सिंह ने 1996 में 17 कुमाऊं रेजीमेंट ज्वाइन की थी।
वही हवलदार के छोटे भाई पूर्व सैनिक जगत सिंह ने बताया कि उनकी मां की बचपन में मौत हो गई थी। पिता नारायण सिंह इसी साल 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) को दुनिया छोड़कर चले गए। अब बड़ा भाई 15 अगस्त के राष्ट्रीय पर्व पर साथ छोड़कर चला गया। छह महीने में परिवार को दूसरी बार असहनीय स्थिति का सामना करना पड़ा है। बोलता उत्तराखंड की पूरी टीम शहीद को कोटि कोटि प्रणाम करती है, अपनी भावभीनी श्रदांजलि अर्पित करती है , नमन करती है ।
जय हिंद।