Wednesday, May 1, 2024
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ये जिंदगियां भी अनमोल है साहब, मत मरने दो मेरे पहाड़ वालों को !

ऑल वेदर रोड को लेकर केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार का डबल इंजन भले ही देवभूमि के पहाड़ी क्षेत्रों की सड़कों की कायापलट का सपना देख रहा हो लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर हैं। पहाड़ का ग्रामीण आज भी जान हथेली पर रखकर पहाड़ी सड़कों पर सफर कर रहा है। ऐसा कोई दिन नही जब देवभूमि की सड़कों पर कोई दुर्घटना ना हो। यूं तो ये भी हर खबर पढ़ने वाले के लिये बस खबर ही है कि अल्मोड़ा जिले के सल्ट ब्लाक के दानापानी में चीरधार टोटाम के पास बस ढाई सौ मीटर गहरी खाई में जा गिरी।

हादसा मंगलवार सुबह करीब सवा आठ बजे हुआ। हादसे में मरने वालों की संख्या 13 बताई जा रही है। जबकि 14 लोग घायल हो गए हैं। यूं तो ज़ितना विकास मैदानी क्षेत्रों को संवारने में आजतक डबल इंजन की सरकार ने किया है उसका आधा भी अगर पहाड़ी क्षेत्रों के लिए किया जाता तो सड़क दुर्घटनाओं का बढ़ता आंकड़ा घट सकता था लेकिन हकीकत तो ये है कि ये साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है।

यूं तो उत्तराखंड की यातायात व्यवस्था का ज़िम्मा परिवहन विभाग का है लेकिन परिवहन विभाग की भी अधिकतर योजनाएं मैदानी इलाकों तक ही सिमट कर रह जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में परिवहन की सुविधाएं खस्ताहाल है हालांकि प्राइवेट टैक्सियों का धंधा फल फूल रहा है और लोगों को ज़रूरत से ज्यादा किराया भी मजबूर होकर देना पड़ रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में परिवहन विभाग द्वारा बसों को लगाया तो जाता है लेकिन उन बसों की हालत इतना खस्ताहाल होती है कि वो रोज़ दुर्घटनाओं को न्यौता देती है।

अब सवाल उठता है कि पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली दुर्घटनाएं किसी भी सरकार के लिए क्या बस एक खबर बनकर रह जाती है या फिर परिवहन विभाग और पीडब्लयूडी के नाम पर बस सरकारी खज़ाने की लूट मचाई जा रही है। 17 सालों में कुछ तो सुधार होना चाहिए था । कठघरे में इन 17 सालों में आई हर सरकार है जो कि अपने हर साल के बजट में यातायात व्यवस्था और सड़क निर्माण के लिए हज़ारों करोड़ खर्च करने के दावे तो करती है लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों की हालत में तो इन 17 सालों में कोई सुधार होता नही दिखता । अब अगर कोई सुधार नही हुआ तो इन 17 सालों में हज़ारों करोड़ का बजट आखिरकार कौन से धरातल पर अपनी सड़कों को आकार दे रहा था। कुल मिलाकर उत्तरांचल का विकास होते होते वो उत्तराखंड तो बन गया लेकिन लोगों को मूलभूत सुविधाओं का हक पूरी तरह से नही मिल पाया। पहाड का जीवन तो वैसे ही मुश्किलों भरा होता है लेकिन पहाड़ों का सफर भी अब डरावना और मुश्किलों भरा हो गया है। आखिर प्रदेश का पहाड़ी जीवन जाए तो जाए कहां।

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