देवभूमि के लाल भारत माता की सेवा कर रहे हैं और अपना फर्ज ईमानदारी से निभा रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार अपने फ़र्ज़ को समझती हैं या नही ये बात अलग हैं। ये इसलिए कहा जा रहा है कि इंडियन आर्मी के जनरल बिपिन रावत का गांव अब तक सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाया है।
सत्रह साल बाद भी उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में सहूलितों का जन्म नहीं हुआ है लिहाजा दुर्दशा जिंदा है। जनरल साहब का पैतृक गांव विरमोली के उपग्राम सैंण में सड़क की सहूलियत नहीं पहुंची। ऐसे में रविवार को जब जनरल बिपिन रावत सेना प्रमुख बनने के बाद अपने पैतृक गांव पैदल खड़ी चढ़ाई चढ़कर पहुंचे।
हालांकि वह हेलीकॉप्टर से भी गांव पहुंच सकते थे, लेकिन वह लैंसडौन में हेलीकॉप्टर से उतरकर पहले कार और फिर पैदल गांव तक पहुंचे। जनरल रावत ने करीब ढाई घंटे परिजनों संग बिताए। उन्होंने गांव के लोगों का हाल-चाल भी जाना। इस दौरान जनरल रावत के साथ उनकी पत्नी मधुलिका रावत भी थी।
गौरतलब है कि सैणा गांव पौड़ी जिले के द्वारीखाल विकासखंड में पड़ता है। जनरल रावत के गांव पहुंचने की सूचना पर लोग बड़ी संख्या में उमड़ पड़े। गांव पहुंचते ही ग्रामीणों और परिजनों ने उनका स्वागत किया। यहां उनके स्वागत के लिए उनके चाचा भरत सिंह रावत और हरिनंदन सिंह समेत पूरा गांव उमड़ पड़ा। बस फिर क्या था जरनल रावत के आगे पहाड़ के लोगो ने उनसे अपने दुख- दर्द से अवगत कराया। किसी ने जनरल साहब से सड़क पहुचाने की गुजारिश की, तो किसी ने रोजगार की। वहीं पहाड़ को अपने पीठ पर उठाए पहाड़ को ज़िंदा रखने वाली मातृशक्ति ने जनरल रावत से उन बंदर-सुअर और सेही,मृग की शिकायत की जिनकी वजह से खेती-किसानी खत्म हो गई है। उन्होंने कहा जंगली जानवरों ने हमारा जीना मुहाल कर दिया है। सुबह से शाम तक खेतों मेहनत करो लेकिन जब फसल काटाने की नौबत आती है तो उससे पहले जंगली जानवर उनकी मेहनत को चर जाया करते हैं।
जनरल रावत ने सबकी सुनी और गांव को सड़क से जोड़ने और दूसरी तकलीफों के निज़ात के लिए शासन-प्रशासन से बात करने का भरोसा दिलाया।
गांव में जनरल रावत काफी देर तक पैदल घूमे और बचपन की यादें ताजा कीं। वे ग्रामीणों से मिले और उनकी कुशलक्षेम पूछी। उनके चाचा भरत सिंह व हरिनंदन सिंह ने बताया कि जंगली जानवर फसलों को नष्ट कर देते हैं, जिससे लोगों ने खेती करनी छोड़ दी है। यही नहीं, धीरे-धीरे लोग गांव से भी रुखसत हो रहे हैं।
इस पर जनरल रावत ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए रोजगार देने वाली योजनाओं को गांवों में लाना होगा। जनरल रावत के इस दौरे को बेहद गोपनीय रखा गया हालांकि सेना की ओर से सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। अब बोलता हैं उत्तराखण्ड कि, सरकार मेरे पहाड़ को बचा लो , मेरे पहाड़ के लोगो का दर्द कम करो! आप भी पहाड़ से निकलकर सत्ता तक पहुचे हो, उन्हीं पहाड़ों में आपका बचपन भी गुजरा है। जिस पौड़ी ने राज्य को चार मुखिया दिए बावजूद इसके उसी पौड़ी जिले के गांव बुनियादी सहूलियतों के लिए तरस रहे हैं। ऐसा क्यों लगता हैं मुझको कि पौड़ी गढ़वाल का कोई अपना हम दर्द नही हैं ।
मुखिया त्रिवेन्द्र रावत जी जानता हूँ कि आपके पास कोई जादू की झड़ी नही, कि जो घुमाई ओर हो गया विकास, पर आपके पास मज़बूत सोच हैं ,इरादे हैं ,पहाड़ की हर नब्ज़ से आप वाकिफ़ हैं। ये तो जरनल रावत के गांव की बात थी सो ख़बर बन गयी ।
लेकिन हकीकत ये है कि सूबे के सैकड़ों गांव बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। सड़क, पानी, बिजली तब गांव पहुंच रही है जब गांव वाले मैदानों की ओर शिफ्ट हो चुके होते हैं। विकास की परछाई से दूर कई गांवों की सच्चाई आपके कानो तक भी पहुचती हैं।
आपके गांव ‘खैरासैंण’के लोग भी यही कहते हैं कि अगर अब पौड़ी गढ़वाल का विकास नही हो पाया तो फिर कभी हो पाएगा। क्योकि त्रिवेंद्र रावत ही वह सीएम हो सकते हैं जो पौड़ी को करीब से जानते हैं उसकी दुख तकलीफ को जानते हैं।
बेशक आप पूरे प्रदेश के मुखिया हो आपको पूरी प्रदेश का विकास करना हैं पर पौड़ी जिले के जनता को अापसे बड़ी उम्मीद हैं उनका मानना कि पौड़ी का विकास अभी, नही तो फिर कभी नहीं।