राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के पीछे उनके राजनीतिक दुश्मन की सख्या क्या कम थी जो अब त्रिवेन्द्र रावत सरकार के अधिकारी- कर्मचारी भी वो गलतिया जाने अनजाने मे या अपने सदियों पुराने मानकों को आगे रख कर कर रहे है जिससे डबल इज़न की सरकार की छवि खराब हो रही है ओर टीवी चैनल से लेकर सोशल मीडिया पर त्रिवेन्द्र रावत की सरकार पर गुस्सा उतारा जा रहा है तो विपक्ष मे बैठी कांग्रेस भी मौका कहा छोड़ेगी उसने सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज़ ओर बुलंद कर दी है मामला है बीते दिनो का जब चमोली जनपद के कई गांवों में प्राकृतिक आपदा ने काफी नुकसान पहुंचाया था ।जिसमे जोशीमठ के चांई गांव के लोगों को भी आपदा में काफी नुकसान उठाना पड़ा। इसी साल सात जुलाई को चमोली जिले के चांई गांव में आपदा की मार से कई लोग तो घर से बेघर हो गए। चांई गांव के ग्रामीणों की कृषि भूमि, गोशाला सहित घरों को काॅफी नुकसान पहुंचा। बारिश से गांव के 94 परिवारों की 1.87 हेक्टेयर काश्तकारी जमीन को नुकसान पहुंचा था। अब प्रशासन इस गांव के आपदा प्रभावितों को मुआवजा वितरित कर रहा है। आपको बता दे कि चांई गांव के 94 आपदा प्रभावित परिवारों के मुआवजे के लिए कुल 70,125 रुपये के चेक बनाए हैं। ओर हैरत को बात ये है कि मुआवजे की राशि इतनी कम है कि इसे लेने से आपदा प्रभावित इन्कार कर रहे हैं।
आपको बता दे कि मात्र 500 रुपए से कम राशि के ऐसे चेक 25 प्रभावितों के बनाए हैं। मुआवजा राशि इतनी कम है कि इस राशि में ग्रामीणों के आने जाने तक का किराया नहीं निकल रहा है। ऐसे में अधिकतर प्रभावितों ने मुआवजा राशि के चेक लेने से इंकार कर दिया है। आपदा प्रभावितों ने प्रशासन के 500 तक के चेकों को लेने से इन्कार किया है। लोगों का कहना है कि उनकी कृषि भूमि, गोशाला सहित घरों को नुकसान पहुंचा है और प्रशासन मुआवजा के नाम पर ऊंट के मुंह में जीरा वाली कहावत चरितार्थ कर रहा है। यह आपदा प्रभावितों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। लोग कह रहे है कि वहाँ यही है डबल इज़न का कमाल मोदी जी के राज मैं नुकसान की भरपाई मात्र 100 रुपए 200 रुपए ।
इन 100 व 200 रुपये के चेक देखकर पूरे गाँव के लोग खून के आंसू रो रहे है
आपको ये भी बता दे कि
चांई गांव के 25 प्रभावितों के बनाए गए हैं 500 रुपए ज़के कम के चेक ।
ग्राम प्रधान रघुवीर सिंह को पांच नाली काश्तकारी भूमि की क्षति के बदले 112.50 रुपये,
बालक सिंह को आठ नाली के एवज में 262.50 रुपये,
प्रेम लाल को सात नाली के एवज में 187.50 रुपये,
संजू लाल को 150 रुपये,
सुरेश लाल को 150 रुपये,
कुंदन सिंह को 375 रुपये,
ईश्वर सिंह को 375 रुपये,
बिजेंद्र सिंह को 250 रुपये,
बांके लाल को 112.50 रुपये । इन राहत राशि कहे या आपदा राहत चेक आप जो भी समझे मीडिया मे आने के बाद सरकार की किरकिरी खूब हो रही है ज़िस के बाद मुख्यमंत्री ने पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की है और मुख्यमंत्री ने खुद कहा है कि
आपदा प्रभावितों को मुआवजा राशि बेहद कम होने की बात उनकी समझ से परे है। इस पूरे मामले को दिखाया जायेगा। इसके लिए संबंधित अधिकारियों से संपूर्ण विवरण सहित रिपोर्ट देने को कहा गया है। सरकार आपदा प्रभावितों के साथ खड़ी है। बोलता है उत्तराखंड़ की ये कोन से मानक है
मुआवजे के अजीबोगरीब मानक आपको बता दे कि उत्तराखंड सरकार द्वारा क्षतिग्रस्त काश्तकारी भूमि के नुकसान पर एक हेक्टेयर पर 37500 रुपये के मुआवजे का प्राविधान है। चमोली में काश्तकारों के पास नाममात्र की भूमि है। यह भूमि भी आपदा में तबाह होने के बाद अब प्रभावितों के सामने रोजी रोटी का संकट भी पैदा हो गया है। तहसीलदार चंद्रशेखर वशिष्ठ ने बताया कि चांई गांव में जुलाई में आपदा आई थी। आपदा से गांव में काश्तकारी भूमि तबाह हुई थी। ऐसे प्रभावितों को सरकारी मानकानुसार मुआवजा राशि के चेक वितरित किए जा रहे हैं। बोलता है उत्तराखंड़ की सरकारे बदलती रहती है , मुख्यमंत्री कपड़े की तरह राज्य मे बदलते रहते है , कोन कब जाने को पूर्व हो जाता है , ओर कोन पूर्व के बाद फिर वर्तमान सीएम बन जाता है मंन्त्री बन जाता है अधिकारी बन जाता है पर ये आपदा राहत वाले मानक नही बदलते सरकार । राज्य के नोकरशाह ने ठान रखी है कि गरीब पहाड़ के लोगों को खून के आंसू रुलाने है । क्या कभी इन अधिकारियों ने सरकार तक बात पहुचाई की सरकार हमारे आपदा राहत के मानक ये है ओर इनमें आज बदलाव की जरूरत है क्योकि जिन मानकों की दुहाई अधिकारी दे रहे है मानो ये मानक कही साल से चल रहे हो । बहराल जो भी पर सवाल तो त्रिवेन्द्र रावत की सरकार पर ही उठेगा ओर हम यही कहेंगे कि शाहब ये उत्तराखंड़ के गाँव है यहा के लोग है कम से कम इतना तो सोचो कि आप के एक होटल मे बैठ कर सिर्फ एक व्यक्ति के चाय ओर पानी पीने का बिल भी इस आपदा राहत की राशि से ज्यादा आता है । फिलहाल मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने पूरे मामले पर रिपोर्ट मांगी है अब देखना ये है कि निकलकर क्या आता है