त्रिवेंद्र सरकार उत्तराखंड में मनरेगा के तहत पांच हजार से ज्यादा जल स्रोतों के पुनर्जीवन देने जा रही है..

उत्तराखंड  में त्रिवेंद्र रावत की सरकार अब मनरेगा के तहत पांच हजार चाल-खालो में नौलों-धारों में वापस लाया जाएगा पानी

जी हा मनरेगा के तहत अब त्रिवेंद्र सरकार उत्तराखंड में पांच हजार से ज्यादा जल स्रोतों के पुनर्जीवन देने जा रही है
ओर पुनर्जीवित किए गए जल स्रोतों की कम से कम दो साल तक निगरानी भी होगी। जिसका भी प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है।

त्रिवेंद्र रावत की सरकार ने उत्तराखंड में हर घर नल योजना भी शुरू कर चुकी है।
पर जलवायु परिवर्तन के कारण जल स्रोत सूख रहे हैं या उनमें पानी कम हो रहा है। ऐसे में पेयजल योजनाओं पर भी संकट है। बता दे कि
मनरेगा के तहत वैसे भी जल संवर्द्धन का काम किया जाता है लेकिन इसकी निगरानी नहीं होती।
लेकिन अब मनरेगा के तहत चाल-खाल, नौले, धारे आदि को पुनर्जीवित करने का काम किया जाएगा। मनरेगा के तहत ऐसे पांच हजार जल स्रोत चिह्नित भी किए जा चुके हैं।
ओर इनमें निर्माण, श्रम आदि का भुगतान मनरेगा से होगा।
ख़बर है कि
शासन स्तर पर कुछ ही दिनों में इसके विस्तृत दिशा निर्देेश भी जारी हो सकते हैं।
इस योजना की खास बात यह है कि इसमें हर योजना के लिए स्थानीय स्तर पर कमेटी बनेगी। यह कमेटी स्रोत के पुनर्जीवन का खाका तैयार करेगी और कम से कम दो साल तक स्रोत की लगातार निगरानी करेगी।
स्रोत का हर तीन माह में परीक्षण किया जाएगा और देखा जाएगा कि जल प्रवाह इसमें बढ़ रहा है या कम हो रहा है। जल स्रोत के पुनर्जीवन के लिए चाल खाल बनाने से लेकर पौध रोपण तक का काम होगा। 
बता दे कि
स्टेट ऑफ इनवायरमेंट रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में लगभग 12 हजार जल स्रोत सूख चुके हैं।
वही हैस्को ने बार्क मुंबई की मदद से 16 जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने का काम किया था। 

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 450 करोड़ से अधिक पैसा झोंकने वाली मनरेगा योजना से 11 सितंबर तक लगभग सात लाख श्रमिक जुड़ चुके हैं। ओर लगभग एक लाख आठ हजार प्रवासियों को इसमेेें काम दिया जा चुका है। इसमें 55 हजार अलग-अलग काम पूरे प्रदेश में किए जा रहे हैं। 
वही अधिकारियों के अनुसार मनरेगा से कोसी पुनर्जीवन योजना के तहत व्यापक स्तर पर पौधरोपण किया गया और जल स्रोतों को सुधारा गया। इसके हाल में सामने आए परिणाम को देखते हुए ही अन्य जल स्रोतों के लिए यह योजना बनाई गई है। इसका फायदा यह भी है कि पुनर्जीवन के काम में स्थानीय स्तर पर सहयोग भी मिल जाता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here