वनाग्नि पर आंकड़ा जुटाने वाला पहला हिमालयी राज्य बनेगा उत्तराखंड, पर्यावरणीय नुकसान का खाका तैयार करेगा PCB –    

वनाग्नि पर आंकड़ा जुटाने वाला पहला हिमालयी राज्य बनेगा उत्तराखंड, पर्यावरणीय नुकसान का खाका तैयार करेगा PCB –

 


उत्तराखंड में वनाग्नि से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान का अब लेखा जोखा तैयार किया जा सकेगा. इसके लिए हिमालयी राज्य में पहली बार वृहद स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण को लेकर मॉनिटरिंग सिस्टम तैयार किया जा रहा है. जिसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उत्तराखंड के सभी जिलों में वनाग्नि की घटनाओं पर नजर रख सकेगा. खास बात ये है कि इससे जंगलों में लग रही आग के कारण हो रहे पर्यावरण प्रदूषण का ज्यादा बारीकी से आकलन किया जा सकेगा, जिसके आधार पर भविष्य में राज्य सरकार और बेहतर प्लान के साथ इसके लिए काम कर सकेगी.

उत्तराखंड ही नहीं बल्कि, समूचे हिमालयी राज्यों में वनाग्नि से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान का कोई खास रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. हालांकि, कुछ जगहों पर इससे संबंधित अध्ययन किए गए हैं, लेकिन ये आंकड़े बेहद सीमित क्षेत्र के ही रहे हैं. ऐसे में उत्तराखंड हिमालयी राज्यों में ऐसा पहला राज्य बनने जा रहा है, जहां वनाग्नि को लेकर वृहद स्तर पर रिकॉर्ड जुटाया जा सकेगा. खास बात ये है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसके लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जुड़े वैज्ञानिकों से भी इसके लिए संपर्क किया जा रहा है.

हर साल जंगलों में लगती है भीषण आग: बता दें कि उत्तराखंड में हर साल फॉरेस्ट फायर यानी वनाग्नि की घटनाएं हो रही हैं. इससे जुड़े आंकड़े भी बढ़ते हुए क्रम में दिखाई दे रहे हैं. जाहिर है कि इन स्थितियों के बीच पर्यावरणीय नुकसान भी बढ़ रहा है. हालांकि, राज्य भर में इससे कितना नुकसान हो रहा है और पर्यावरण में किन गैसों का उत्सर्जन हो रहा है? इसके कारण सबसे ज्यादा असर किस पर देखने को मिल रहा है, ऐसी कोई खास रिपोर्ट राज्य के पास मौजूद नहीं है.

उत्तराखंड के सीमित क्षेत्र के लिए फॉरेस्ट फायर के दौरान किए गए अध्ययन के आंकड़े भी काफी चौंकाने वाले रहे हैं. शायद यही कारण है कि बड़े स्तर पर भी पर्यावरण को जंगलों में आग के चलते हो रहे नुकसान का आकलन करना बेहद जरूरी है. ताकि, ये भी पता चल सके कि स्वच्छ आबोहवा वाले हिमालय में प्रदूषण कितना नुकसान पहुंचा रहा है. साल 2024 में हुए एक अध्ययन के दौरान थराली के डूंगरी क्षेत्र में प्राणमति नदी बेसिन में फॉरेस्ट फायर सीजन में ब्लैक कार्बन 70 से 80 फीसदी तक बढ़ता हुआ रिकॉर्ड किया गया

साल 2024 में वनाग्नि से बढ़ गया था ब्लैक कार्बन: दरअसल, साल 2024 में वनाग्नि की रिकॉर्ड घटनाएं सामने आई थी. ऐसे में ब्लैक कार्बन की मात्रा भी साल 2024 में काफी ज्यादा रिकॉर्ड की गई. अध्ययन के दौरान 2000 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्र में 13 से 14 माइक्रोग्राम/मीटर क्यूब कार्बन रिकॉर्ड हुआ. जबकि, सामान्य दिनों में यहां पर 1.5 माइक्रोग्राम/मीटर क्यूब कार्बन ही रिकॉर्ड किया जाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से 5 माइक्रोग्राम/मीटर क्यूब तक को ही स्वास्थ्य के लिए सही माना है. ब्लैक कार्बन को मापने के लिए एथेलोमीटर का उपयोग किया जाता है. यह ऑप्टिकल बेस्ड मशीन होता है. फॉरेस्ट फायर सीजन में ब्लैक कार्बन (Black Carbon) 70 से 80% तक बढ़ जाता है. यदि प्रदेश में फॉरेस्ट फायर के दौरान पर्यावरण नुकसान का आकलन किया जाता है तो यह अच्छा कदम होगा. – विजय श्रीधर, असिस्टेंट प्रोफेसर, दून विश्वविद्यालय

वनाग्नि के रिकार्ड्स पर गौर करें तो साल 2024 में देशभर में सबसे ज्यादा वनाग्नि की घटनाओं वाले राज्यों में उत्तराखंड भी शुमार रहा था. हालांकि, इस साल उत्तराखंड को इस मामले में कुछ राहत मिलती हुई दिखाई दी है. इस साल के आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में फॉरेस्ट फायर सीजन के दौरान अब तक कुल 75 वनाग्नि की घटनाएं हो चुकी है. जिसमें 66.52 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुए हैं.

उत्तराखंड में साल 2025 वनाग्नि के लिहाज से राहत भरा: इस तरह यह साल प्रदेश के लिए जंगलों में आग को लेकर अब तक राहत भरा रहा है. राज्य में साल 2024 के दौरान अब तक 536 घटनाएं हो चुकी थी. जबकि, इससे पहले साल 2023 में इतने ही समय में 268 घटनाएं रिकॉर्ड की गई थी. इस वक्त देश में पहले नंबर पर मध्य प्रदेश है, जहां 1,123 घटनाएं अब तक हो चुकी हैं.

उत्तराखंड के सभी जिलों में लगाए जाएंगे एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग उपकरण: उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड राज्य के सभी जिलों में एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग उपकरण लगाने जा रहा है. वैसे तो यह उपकरण जिला मुख्यालयों के आसपास के क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण को लेकर सभी आंकड़े रिकॉर्ड करेंगे, लेकिन जंगलों में आग की घटनाओं के दौरान पर्यावरण के नुकसान को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड खास तौर पर निगरानी रखेगा. इससे संबंधित आंकड़ों के आधार पर फॉरेस्ट फायर से पर्यावरण को हो रहे नुकसान का खाका भी तैयार करेगा.
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सीपीसीबी यानी सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से भी इन उपकरणों को लगाने और मॉनिटरिंग सिस्टम को तैयार करने के लिए संपर्क किया है. ताकि, जानकार एक्सपर्ट की निगरानी में इससे संबंधित रिकॉर्ड को जुटाया जा सके. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का मानना है कि इस स्थिति से भविष्य में बेहतर प्लानिंग के साथ आगे की कार्रवाई की जा सकेगी.

एयर क्वालिटी स्टेशन तैयार करने के लिए साधा जा रहा संपर्क: साइंटिफिक डाटा सामने आने के बाद वन विभाग भी और बेहतर तरीके से काम कर सकेगा. साथ ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर भविष्य की रणनीति भी तय की जा सकेगी. हालांकि, अभी एयर क्वालिटी स्टेशन तैयार करने के लिए विभिन्न जानकार एजेंसियों से संपर्क किया जा रहा है और आने वाले कुछ महीनो में ही इसके सभी जिला मुख्यालयों पर लगने की उम्मीद है.

उत्तराखंड के हर जिले में एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन बनाया जाएगा. ऐसा करने वाला उत्तराखंड पहला हिमालयी राज्य बन जाएगा. अभी तक हमारे पास वनाग्नि से कहां-कहां और कितनी मात्रा में गैस उत्सर्जित हो रहा है? उसका सटीक आंकड़ा नहीं है, लेकिन पहली बार इसके जरिए निगरानी की जाएगी. साथ ही फॉरेस्ट फायर से पर्यावरण को होने वाले नुकसान संबंधी आंकड़ों को तैयार किया जाएगा. यह स्वास्थ्य के नजरिए काफी अहम है. रणनीतिक बदलाव के साथ ही फॉरेस्ट फायर कंट्रोल में आधुनिक तकनीक की सहायता लेनी पड़ रही है, उसमें भी मदद मिलेगी.

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