
उत्तराखंड फॉरेस्ट फायर का हाईकोर्ट ने फिर लिया संज्ञान, कोर्ट और न्यायमित्र ने दिए सरकार को अपने सुझाव –
नैनीताल: उत्तराखंड हाइकोर्ट ने फायर सीजन में प्रदेश के जंगलों में लगने वाली आग पर स्वतः संज्ञान लिए जाने वाली जनहित याचिका समेत कई अन्य जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की.
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि प्रदेश के जंगलों में आग लगना एक फेस्टिवल (त्योहार) की तरह हो गया. उसके बाद भी राज्य सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है. जिसकी वजह से पर्यावरणीय क्षति, जंगलों में रहने वाले पशु, आम नागरिकों की दिनचरिया प्रभावित हो रही है. आग की वजह से उच्च हिमालयी क्षेत्रों का तापमान बढ़ने लगा है. कोर्ट हर साल राज्य सरकार का मार्गदर्शन करती आई है. लेकिन इसके बाद भी इस पर काबू पाने के लिए सरकार कोई ठोस उपाय नहीं ढूंढ पाई है. जो कदम राज्य सरकार ने उठाए, वे भी कोर्ट के आदेश पर.
शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान पीसीसीएफ कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए. कोर्ट समेत न्यायमित्र मैनाली ने इसपर काबू करने के लिए अपने अपने सुझाव दिए. कोर्ट ने अपने सुझाव में कहा कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में खाल (पोंड) बनाए जाए. जो जल स्रोत हैं, उनका पानी खालों में जमा किया जाए. जहां पानी नहीं है, उनमें भी खालें बनाई जाए. सभी खालों को एक दूसरे से जोड़ा जाए. जिसके कि फायर सीजन में उनका उपयोग फायर लाइन की तरह किया जा सके.
पीसीसीएफ के द्वारा कहा गया कि पूर्व के आदेशों के क्रम में राज्य सरकार इस पर कार्य कर रही है. जबकि न्यायमित्र की तरफ से कहा गया कि 2021 से राज्य सरकार कोर्ट में आश्वासन देने के अलावा कुछ नहीं कर रही है. फॉरेस्ट फायर पर काबू करने के लिए उच्च न्यायालय ने 2017 में विस्तृत गाइड लाइन जारी की थी. कोर्ट ने 2021 में मुख्य समाचार पत्रों में प्रकाशित आग की खबरों पर स्वतः संज्ञान लिया था. यही नहीं, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने भी इसपर काबू पाने के लिए मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजा था. जिसमें कहा था कि वन, वन्यजीव और पर्यावरण को बचाने के लिए उच्च न्यायालय राज्य को दिशा निर्देश जारी करें.
कोर्ट ने इनका संज्ञान लेकर कई दिशा निर्देश राज्य सरकार को जारी किए थे. लेकिन अभी तक उन आदेशों का सही तरह से अनुपालन नहीं होने पर कोर्ट ने इस मामले को पुनः सुनवाई के लिए आज सूचिबद्ध किया. जबकि हाइकोर्ट ने 2016 में भी जंगलों को आग से बचाने के लिए गाइड लाइन जारी की थी. कोर्ट ने अपने दिशा निर्देशों में कहा था कि गांव स्तर से ही आग बुझाने के लिए कमेटियां गठित की जाए. नागरिकों में जागरूकता अपनाई जाने के साथ-साथ अन्य कई निर्देश दिए थे. जिस पर आज तक अमल नहीं किया गया.
न्यायमित्र मैनाली ने कहा कि सरकार जहां आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का उपयोग कर रही है, उसका खर्चा बहुत अधिक है और पूरी तरह से आग भी नहीं बुझती है. इसके बजाय गांव स्तर पर कमेटियां गठित की जाए. उन्हें इसके दुष्परिणाम के बारे में बताया जाए. अभी तक उस आदेश का अनुपालन तक नहीं हुआ. वर्तमान में राज्य सरकार आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का सहारा ले रही है, जो काफी महंगा है.