पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लिखते है कि
यूँ केदारनाथ में माननीय प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम को लेकर मैं विवाद को आगे नहीं बढ़ाना चाहता। मैंने प्रात: स्मरणीय शंकराचार्य जी के समाधि स्थल का चयन, शंकराचार्य जी की ही परामर्श पर किया था। #शंकराचार्य जी से मेरा तात्पर्य, ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य जी से है। आपने दूसरे स्थान को चयनित किया, मूर्ति का भी स्वरूप बदला, हमें उसमें कोई एतराज नहीं है। आप सत्ता हैं, आपने उचित ही समझा होगा। लेकिन इतना तो कर देते कि जब आदि गुरु शंकराचार्य जी की मूर्ति का अनावरण हो रहा है तो वहां वो अनावरण का कार्यक्रम किसी शंकराचार्य जी के आशीर्वाद के साथ ही प्रारंभ होना चाहिए था, कोई शंकराचार्य जी वहां पर उपस्थित रहते, साधु-महात्मा, महामंडलेश्वर के समूह से वो काम करवाया जा सकता था, आदि शंकराचार्य जी को भी अच्छा लगता और यदि ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य जी के साथ भाजपा कुछ परहेज रखती है क्योंकि वो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी हैं, तो फिर आप कोई #भाजपा मॉडल के शंकराचार्य जी को ही बुला लेते, उनसे ही करवा लेते। हमारे लिए तो साधु वेश में जो भी है, वो देवता स्वरूप है।
#जय_केदारा