कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी

नरेन्द्र सिंह नेगी ने अपने गीतों के जरिये समाज के विभिन्न पहलुओं को भी समय समय पर छुआ है। “कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी” उनका एक ऐसा ही गीत है जिसमें उन्होने बढ़ती मँहगाई से त्रस्त एक व्यक्ति का चित्रण किया है। यह गीत “माया को मुंडारो” नामक वीसीडी से लिया गया है और इस गीत के ऑडियो और वीडियो अधिकार हिमालयन फिल्म्स के पास है। यदि आपको को पसंद आए तो मूल सीडी/वीसीडी खरीदें। इस चित्रगीत के निर्देशक श्री अनिल बिष्ट हैं।

भावार्थ : कैसे खीचें अब मंहगाई से त्रस्त हो गयी है जिन्दगी। आटा, चावल, दाल, तेल, चाय, चीनी, दवाई सब मंहगे हो गये हैं। ऐसा ही हाल रहा तो किसी दिन सुनोगे कि फांसी लगाकर मर गयी जिन्दगी। आना-जाना, कपड़े-लत्ते, स्कूल की फीस सब मँहगे हो गये ऐसे में एक बेचारा गरीब क्या करेगा, कैसे जियेगा। बाजार में सारी चीजें मँहगी है। जिन नेताओं पर भरोसा करके उनको वोट दिया था वह भी गायब हो गये। पैशन और मनीऑर्डर के सहारे ही अब घर का खरचा चलता है लेकिन जो बेचार बेरोजगार है उसका क्या? उसकी तो कोई नहीं सुनता। ऐसे में कैसे खीचें इस जिन्दगी को।

गीत के बोल देवनागिरी में

कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी, कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी
ना भै हमरा बसै नि इथगा महंगि जिन्दगी.., ना जी हमरा बसै नि रै या महंगि जिन्दगी..
कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी, कन क्वै खेचण……..

आटो,चौंल मैंगो हैगे मैंगि दाल तेल, चाहा, चिनी, दवाई-दारु महंगि कन क्वै बचोलु सरैल
आटो,चौंल मैंगो हैगे मैंगि दाल तेल, चाहा, चिनी, दवाई-दारु महंगि कन क्वै बचोलु सरैल
कै दिन सूणी…,कै दिन सूणी  लिया बल फांस खैगे जिन्दगी
ना भै हमरा बसै नि इथगा महंगि जिन्दगी.., ना जी हमरा बसै नि रै या महंगि जिन्दगी..
कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी, कन क्वै खेचण……..

आवत जावत महंगि, महंगि झगुलि टोपलि फीस, निखाणि निसैणि करणा छि गरिबों कि, मैंगै का ये झीस
आवत जावत महंगि, महंगि झगुलि टोपलि फीस, निखाणि निसैणि करणा छि गरिबों कि, मैंगै का ये झीस
झीस कुमरो*…., झीस कुमरो* बिरान्दि झणान्दि रैगे जिन्दगी
ना भै हमरा बसै नि इथगा महंगि जिन्दगी.., ना जी हमरा बसै नि रै या महंगि जिन्दगी..
कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी, कन क्वै खेचण……..

सैरा बजार बणाग लांगीछ, चीज-वस्तु मां करन्ट, जों पर जनता को भारी भरोस छो, वों भि हुया छन सन्ट
सैरा बजार बणाग लांगीछ, चीज-वस्तु मां करन्ट, जों पर जनता को भारी भरोस छो, वों भि हुया छन सन्ट
यूं नेतों की…., यूं नेतों की झूटी बातों में ऐगे जिन्दगी..
ना भै हमरा बसै नि इथगा महंगि जिन्दगी.., ना जी हमरा बसै नि रै या महंगि जिन्दगी..
कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी, कन क्वै खेचण……..

जमाखोर, मुनाफाखोर चलोणा मनमर्जी सरकार, जनता बिचारि कण कणि सौणि, मैंगै की ई मार
जमाखोर, मुनाफाखोर चलोणा मनमर्जी सरकार, जनता बिचारि कण कणि सौणि, मैंगै की ई मार
सस्ता जमाना….., सस्ता जमाना को बाटो हैरदि रैगी जिन्दगी
ना भै हमरा बसै नि इथगा महंगि जिन्दगी.., ना जी हमरा बसै नि रै या महंगि जिन्दगी..
कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी, कन क्वै खेचण……..

पैंशन मनिऑर्डर का सहारा यक जीवन चरखा चलणो, कैं बिचारो नी बीरुजगारी वैकी क्वी नी सुनणो
पैंशन मनिऑर्डर का सहारा यक जीवन चरखा चलणो, कैं बिचारो नी बीरुजगारी वैकी क्वी नी सुनणो
फिर एक तमगा…, फिर एक तमगा लाचारी को पै रैगी जिन्दगी
ना भै हमरा बसै नि इथगा महंगि जिन्दगी.., ना जी हमरा बसै नि रै या महंगि जिन्दगी..
कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी,कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी
कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी, कन क्वै खेचण……..

हिन्दी पद्यानुवाद –

कैसे खींचे अब हो गयी है भारी जिन्दगी, हमरे बस की रही ना अब ये भारी जिन्दगी
कैसे खींचे अब हो गयी है भारी जिन्दगी, हमरे बस की रही ना अब ये भारी जिन्दगी

आटा,चावल महंगा हुआ है, महंगा दाल तेल, चाय, चीनी, दवा भी मँहगी, खर्चे बढ़े जैसे रेल
आटा,चावल महंगा हुआ है, महंगा दाल तेल, चाय, चीनी, दवा भी मँहगी, खर्चे बढ़े जैसे रेल
सुन लेना…., सुन लेना किसी दिन फांसी लगाके मर गई जिन्दगी
ना भाई…हमरे बस की न रही अब भारी जिन्दगी, ना भाई…हमरे बस की न रही अब भारी जिन्दगी
कैसे खींचे अब हो गयी है भारी जिन्दगी,  कैसे खींचे….

आवत जावत मँहगी हो गई, मँहगे लत्ते कपड़े, फीस, भूख और नींद गरीब की महंगाई ने जकड़े
आवत जावत मँहगी हो गई, मँहगे लत्ते कपड़े, फीस, भूख और नींद गरीब की महंगाई ने जकड़े
कुमर* निकाल….., कुमर* निकालते ही उमर कट गई जिन्दगी
ना भाई…हमरे बस की न रही अब भारी जिन्दगी, ना भाई…हमरे बस की न रही अब भारी जिन्दगी
कैसे खींचे अब हो गयी है भारी जिन्दगी,  कैसे खींचे….

सारे बजार में आग लगी है सारीं चीज करन्ट, जिन पर हमने किया भरोसा वो भी हो गये सन्ट
सारे बजार में आग लगी है सारीं चीज करन्ट, जिन पर हमने किया भरोसा वो भी हो गये सन्ट
नेताओं……., नेताओं के वादों में भरमा गई जिन्दगी
ना भाई…हमरे बस की न रही अब भारी जिन्दगी, ना भाई…हमरे बस की न रही अब भारी जिन्दगी
कैसे खींचे अब हो गयी है भारी जिन्दगी,  कैसे खींचे….

जमाखोर, मुनाफाखोर चला रहे सरकार, जनता बिचारी कैसे सहेगी, महंगाई की  मार
जमाखोर, मुनाफाखोर चला रहे सरकार, जनता बिचारी कैसे सहेगी, महंगाई की  मार
ओ सस्ते …., सस्ते जमाने को तकती रह गई जिन्दगी
ना भाई…हमरे बस की न रही अब भारी जिन्दगी, ना भाई…हमरे बस की न रही अब भारी जिन्दगी
कैसे खींचे अब हो गयी है भारी जिन्दगी,  कैसे खींचे….

पैशन, मनीओर्डर से देखो जीवन चरखा चलता, बेरोजगारी के मारे की कोई नहीं है सुनता
पैशन, मनीओर्डर से देखो जीवन चरखा चलता, बेरोजगारी के मारे की कोई नहीं है सुनता
लाचारी….., लाचारी का तमगा फिर से पा गई जिन्दगी
ना भाई…हमरे बस की न रही अब भारी जिन्दगी, ना भाई…हमरे बस की न रही अब भारी जिन्दगी
कैसे खींचे अब हो गयी है भारी जिन्दगी, हमरे बस की रही ना अब ये भारी जिन्दगी
कैसे खींचे अब हो गयी है भारी जिन्दगी,  कैसे खींचे….

* कुमर – कपङों और शरीर पर चिपकने वाले छोटे कांटें

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