जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में देश की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए शहीद प्रदीप सिंह रावत को कल अश्रूपर्ण विदाई दी गई। मुनिकीरेती रेती स्थित पूर्णानंद घाट पर सैन्य सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार किया गया। चचेरे भाई कुलदीप रावत ने पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी।
सोमवार को जैसे ही प्रदीप के शहीद की शहादत की खबर मां उषा देवी व बुजुर्ग दादी शांति देवी को मिली वो सुनकर ही अचेत हो गईं। शहीद की पत्नी नीलम को तो अपनी बदनसीबी पर यकीन ही नहीं हो पा रहा। अब तो कोख में पल रहा 7 माह का गर्भ ही नीलम के पास उसके वीर पति की आखिरी निशानी रह गया है।
शहीद प्रदीप रावत की तीन बहनें हैं, जिनमें सबसे बड़ी बहन अनीता का विवाह हो चुका है। जबकि, दो बहनें विनीता और सुषमा अभी अविवाहित हैं। तीनों बहनों ने दो सप्ताह बाद रक्षाबंधन पर भाई की कलाई के लिए सुंदर राखी संजोकर रखी थी। भाई तो सरहद पर था, इसलिए दो बहनों ने राखियां डाक से ही भाई के लिए भेज दी थीं।
मगर, होनी को कुछ और ही मंजूर था, बहनों की पोस्ट की हुई यह राखियां अब प्रदीप की यूनिट में तो पहुंचेंगी, मगर उन्हें पहनने वाली कलाई नहीं होगी। सोमवार शाम जब शहीद प्रदीप रावत का पार्थिव शरीर घर पहुंचा तो बहनें उस ताबूत के पास आने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाईं। वह दूर से ही एकटक ताबूत और उसमें लिपटे तिरंगे को देखती रहीं और अश्रुधारा बहाती रहीं।
परिवार का एकलौता बेटा और भाई देश के लिए कुर्बान हो गया। परिवार पर मानों दुखों का पहाड़ गिर गया हो। 15 अगस्त को देश की आजादी पर जश्न मनाया जाना था, रक्षाबंधन का त्यौहार भी करीब था। उस परिवार के लिए तो मानो अब कुछ नहीं बचा है। प्रदीप के पिता कुंवर सिंह रावत भी सेना में सिपाही भर्ती हुए थे और अपनी बहादुरी एवं लगन के बूते सूबेदार मेजर पद से सेवानिवृत्त हुए। प्रदीप के चाचा वीर सिंह रावत भी 17वीं गढ़वाल राइफल से सूबेदार मेजर रिटायर्ड हैं।
जबकि, छोटे चाचा भगवान सिंह रावत भी कुछ वर्ष पूर्व ही 13वीं गढ़वाल राइफल से सेवानिवृत्त हुए हैं। परिवार की इसी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रदीप बचपन से ही सेना में जाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जमकर परिश्रम भी किया। वह अपनी यूनिट के भी एक होनहार एवं बहादुर जवान थे। दो वर्ष तक वे एनएसजी में पैरा कमांडो भी रहे। शहीद प्रदीप ही नहीं, बल्कि उनके चचेरे भाई ने भी परिवार की सैन्य विरासत को संभाला है।