9 नवंबर साल 2000 उत्तराखंड राज्य गठन की घोषणा के साथ ही उत्तराखंडवासियों का सपना पूरा हो गया। अलग राज्य का सपना एक समग्र विकास की उम्मीदों के साथ देखा गया था। उम्मीद ये थी की जब राज्य की विधानसभा बैठेगी तो राज्य की समस्याओं और उसके निराकरण को पटल पर रखकर राज्य के जनप्रतिनिधि जनसमस्याओं का निवारण करेंगे। लेकिन असल में ऐसा हुआ नही और आपको ये जानकर हैरानी होगी कि राज्य गठन के इन सत्रह सालों में सदन 1 साल चल ही नही सकी। यूं तो हर विधानसभा सत्र का कार्यकाल पूरे साल में साठ दिनों और तीन सत्र का होता है लेकिन अफसोस की बात तो ये है कि उत्तराखंड में 60 दिन तो क्या इन 17 सालों में ये उसका आधा यानि 30 दिन भी नही चल सका। 2003 में सदन की कार्यवाही सबसे ज्यादा 23 दिन ही चल सकी जबकि 2004 में सबसे कम यानि सात दिन। अब अंदाज़ा लगाना मुश्किल नही कि जब सदन की कार्यवाही चली ही नही तो प्रदेश का विकास कैसे और प्रदेश के जनप्रतिनिधि जनता के मुद्दों को लेकर कितने गंभीर है।
ऐसे तो नहीं चलता सदन जैसा आप चला रहे हैं
वर्ष सत्र दिन
2017 03 13
2016 02 13
2015 02 12
2014 03 19
2013 02 08
2012 03 20
2011 02 14
2010 02 13
2009 03 18
2008 03 20
2007 03 16
2006 02 15
2005 03 21
2004 01 07
2003 03 23
2002 03 17
2001 03 19
अब जब विधानसभा के साल भर के सत्र को लेकर उत्तराखंड में सत्तासीन रही सरकारों का ये रवैय्या रहेगा तो आप अंदाजा लगा सकते है कि जनसमस्याओं को लेकर उनकी क्या सोच रहेगा। बहरहाल सूबे में अब त्रिवेंद्र रावत की सरकार है और सरकार के 1 साल का कामकाज और गैरसैंण का बजट सत्र आप लोगों के सामने है लिहाजा हम उम्मीद करेंगे कि डबल इंजन की सरकार विधानसभा सत्र के दौरान सदन चलाने का अपना एक अलग रिकॉर्ड बनाएं और जब सदन सबसे ज्यादा चलाने वाली त्रिवेंद्र रावत की सरकार बनेगी तब उम्मीद भी की जा सकेगी कि आम आदमी की आवाज़ सदन में उठी होगी और हल भी निकला होगा लेकिन इन सबके लिए करना पडेगा अब इंतज़ार और नज़र रहेगी सरकार पर ।