भारत के राजस्थान राज्य और गुजरात राज्य में तो नवजात बच्चों की मौत के मामलो पर स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल खड़ा होता ही है लेकिन
अगर उत्तराखंड के कुमाऊं गढ़वाल की बात करे तो हालात यहा भी चिंता जनक है
सुना है आपके नैनीताल जिले में ही अकेले हल्द्वानी के बदनाम सुशीला तिवारी अस्पताल मैं बोले तो एसटीएच में 218 बच्चों की मौत का आंकड़ा मिला दिया जाए तो कुमाऊं में 365 दिन मैं यानी एक साल के भीतर ही 386 बच्चों की मौत हुई है दुःखद
जानकार कहते है कि
मंडल के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में एसएनसीयू की सुविधा तक नहीं है। ओर मंडल के सबसे बड़े अस्पताल एसटीएच में तो 20 बेड का एसएनसीयू ही है और मात्र चार बेड पर ही वेंटीलेटर की सुविधा है वही
हल्द्वानी के महिला अस्पताल में स्पेशल न्यूनेटल केयर यूनिट की सुविधा नहीं है। यहां पिछले एक साल में लगभग 4551 बच्चों का जन्म हुआ, जबकि तीन बच्चे मृत पैदा हुए।
जानकार कहते है कि अल्मोड़ा में बाल रोग विशेषज्ञ के पद तो हैं लेकिन जिले के सरकारी और निजी अस्पतालों में एसएनसीयू और वेंटीलेटर की सुविधा ही नहीं है, हा चार बेड का वार्मर जरूर है पर एक साल में इस जिले में आठ नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है दुःखद वही इनमें पांच रानीखेत क्षेत्र के भी हैं। जिला महिला अस्पताल में 24 प्री मैच्योर डिलीवरी हो चुकी हैं। वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रीति पंत ने बताया कि तीन नवजातों की जन्मजात विकृति के कारण भी मौत हुई है।
वही चंपावत जिले में दो एसएनसीयू है साल 2019 में चंपावत जिले में कुल 2408 शिशुओं ने जन्म लिया। इस दौरान 27 शिशुओं की जान गई दुःखद
पिथौरागढ़ जिला महिला अस्पताल में एसएनसीयू में चार बेड हैं। जिले में पिछले एक साल के भीतर 13 प्री मैच्योर शिशुओं की मौत हुई है दुःखद
वही हर गोविंद पंत जिला महिला अस्पताल पिथौरागढ़ के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ और पीएमएस डॉ. जेएस नबियाल ने मीडिया को बताया कि प्री मैच्योर शिशुओं का विकास नहीं होता है। खासतौर पर उनके फेफड़े विकसित नहीं होते हैं। ऐसे शिशुओं के उपचार की यहां पर कोई व्यवस्था नहीं है।
वही बागेश्वर जिले में एक भी एसएनसीयू में वेंटिलेटर की सुविधा नहीं है। जिला अस्पताल में चार बेड के एसएनसीयू में सिर्फ वार्मर की सुविधा है। बदहाल व्यवस्था का आलम यह है कि पूर्व एसपी लोकेश्वर सिंह की पत्नी तक को यहां से रेफर करना पड़ा था। बागेश्वर जिले में 31 नवजात बच्चों की मौत हुई दुःखद वही पारदर्शी व्यवस्था न होने से जच्चा-बच्चा की मृत्यु संख्या के औसत की रिपोर्टिंग भी पूरी नहीं हो पाती है। इस कारण हकीकत और सरकारी दावों में बहुत अंतर है।
वही विभागीय अधिकारियों के माध्यम से चार बेड पर वेंटिलेटर लगाने या छह बेड का नया कमरा बनाने का प्रस्ताव भेजा गया है। ऊधम सिंह नगर जिले में एक अप्रैल से 31 दिसंबर तक 89 नवजातों की मौत हो चुकी है दुःखद जबकि पिछले साल ये संख्या 147 थी। जिले में जवाहर लाल नेहरू जिला चिकित्सालय, एलडी भट्ट संयुक्त चिकित्सालय काशीपुर, नागरिक चिकित्सालय खटीमा समेत कहीं भी वेंटीलेंटर युक्त एसएनसीयू की व्यवस्था नहीं है। एसएनसीयू की सुविधा के नाम पर सिर्फ वार्मर उपलब्ध है।
वही रुद्रपुर स्थित जिला अस्पताल पर प्रसव के लिए रुद्रपुर, किच्छा, शांतिपुरी, गदरपुर, दिनेशपुर आदि क्षेत्रों के गरीब तबके की गर्भवती महिलाएं निर्भर हैं। यहां 12 बेड का एसएनसीयू है। जिले में एक अप्रैल 2019 से 31 दिसंबर तक 19 हजार, 656 बच्चों का जन्म हुआ। इनमें 89 नवजातों की प्रसव के बाद मौत हो चुकी है दुःखद
तो जवाहर लाल नेहरू जिला चिकित्सालय के प्रबंधक अजयवीर सिंह चौहान कहते हैं कि जिला अस्पताल में वेंटीलेटर की सुविधा नहीं है। इस बारे में जब सीएमओ डॉ. शैलजा भट्ट से जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने एक बैठक का हवाला देते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया।
बात दे कि बचंपावत जिले के सेवानिवृत्त सीएमओ और बेस अस्पताल में बतौर बाल रोग विशेषज्ञ तैनात रहे डॉ. मदन बोहरा ने बताया कि नवजात बच्चों की मौत की कई वजह हैं इनमें एक बड़ी पर्वतीय जिलों समेत तराई के कई इलाकों में पर्याप्त संख्या में बाल रोग विशेषज्ञ का नहीं होना है। बाल रोग विशेषज्ञ नहीं होने से नवजातों की बीमारी सही समय पर पता नहीं चल पाती और हल्द्वानी या हायर सेंटर ले जाने में देरी के चलते उनकी मौत हो जाती है। इसके अलावा दूसरी बड़ी वजह स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) का इंतजाम नहीं होना भी है।
जा लो कहा कितनी मौतें हो गई
नैनीताल एसटीएच : 218 मौत
बागेश्वर : 31 मौत दुःखद
चंपावत : 27 मौत दुःखद
ऊधमसिंह नगर : 89 मौत दुःखद
पिथौरागढ़ : 13 मौत दुःखद
अल्मोड़ा : 08 मौत दुःखद ।
बोलता है उत्तराखंड इन मौत के लिए कोंन है ज़िमेदार ??,