बोलता उत्तराखंड़ पर देवेश आदमी की कलम से सवाल करता ये लेख
हम कब शहीद होंगे…
यह सवाल है उन हजारों लाखों सैनिकों का जिन्होंने देश के लिए अपनी जान गवाई औऱ देश का कानून उन को शहीद नही मानता है।
लेकिन सवाल ये है कि क्या उन्हें वाकई ‘शहीद’ का दर्जा मिलेगा? जो अपने मन मानुष माटी के लिए बलिदान हो गए। आपको बता दें कि बीते लंबे वक्त से पैरामिलिट्री फोर्सेज़ में भर्ती वर्ष 2005 के बाद वाले जवानों को पेंशन नहीं दी जाती है। और न ही उन्हें आतंकवादी कार्रवाई के दौरान जान गंवाने पर ‘शहीद’ का दर्जा दिया जाता है। जब कि थल, वायु , जल सेना को पेंसन का प्रावधान है।
साल 2013 में राज्यसभा सांसद किरणमय नंदा ने इसी सिलसिले में तत्कालीन सरकार से पूछा था कि अर्धसैनिक बल के जवान जिनकी मौत देश के लिए अपना फ़र्ज़ निभाने के दौरान होती है, उन्हें सरकार शहीद का दर्जा क्यों नहीं देती? क्या वो सेना, वायु सेना या नौसेना से नहीं होते है, ऐसा क्यों किया जाता है? जिसके जवाब में रक्षामंत्रालय से कहा गया था कि सरकार किसी जवान के साथ भेदभाव नहीं करती, हालांकि ये भी माना गया था कि रक्षा मंत्रालय के पास कहीं भी ‘शहीद’ शब्द की परिभाषा नहीं है। रक्षामंत्रालय ने कभी किसी सैनिक को शहीद नही माना चाहे वह किसी की आरम्फोर्स का है या पैरामिलिट्री का।
अब सवाल यह है कि जब रक्षामंत्रालय शहीद का दर्जा नही देती तो प्रधानमंत्री क्यों लालकिले से बोलते है कि शहीदों को नमन क्यों जनता को गुमराह किया जाता है। आज हम किसी राजनीति की बात नही न्यायनीति की बात कर रहे है। अपने शहीद भाईयों की बात कर रहे है उन के हक़ की बात कर रहे है। क्यों सरकारें शहीदों के नाम पर मार्ग व पुल बनाती है और उस पर लिखती है शहीद फलाना मार्ग क्या यह मंत्रालय का झूठ नही है। क्यों कैप्टेन विक्रम व हनुमन थप्पा को बार बार शहीद कह के जनता का प्यार पाना चाहती है सरकारे?
यह सरकार तो महावीर चक्र विजेता 1972 की लड़ाई का हीरो जसवंत सिंह रावत को भी भगोड़ा साबित कर चुकी थी।
वर्ष 2013 में इस मामले में अनेकों खबर सोशल मीडिया पर जब आई तो एक सुप्रीमकोर्ट बैंच बनी जिस में न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति दीपा शर्मा की पीठ को सूचित किया गया, ‘सेना, नौसेना और वायुसेना की तर्ज पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीआर पीएफ) को ‘शहीद’ का दर्जा देने का अनुरोध गलत धारणा पर आधारित है क्योंकि यह दर्जा वास्तव में सेना, नौसेना और वायुसेना के कर्मियों को दिया ही नहीं जा रहा है.’
सरकार का जवाब वकील अभिषेक चौधरी एवं हर्ष आहूजा की जनहित याचिका के जवाब मे भी यही उत्तर आया कि सरकार किसी को शहीद नही मानती है।
आज मुझे यकीन है कि आपमें से बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि भारतीय सेना और Central Armed Police forces में बहुत बड़ा फर्क है। गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले इन सुरक्षा बलों में मुख्य रुप से CRPF, BSF, ITBP, CISF, Assam Rifles और SSB शामिल हैं।
देश में अर्धसैनिक बलों के जवानों की संख्या 9 लाख से थोड़ी सी ज़्यादा है। जबकि Indian Army, Indian Air Force और Indian Navy में शामिल सैनिकों की संख्या क़रीब साढ़े 13 लाख है।
देश के अर्धसैनिक बल बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, चीन, भूटान और नेपाल से सटे सीमाओं की रखवाली कर रहे हैं।
इसके अलावा अर्धसैनिक बल पूरे देश में मेट्रो, चुनाव,बाड़ आपदा,आतंकवाद औऱ नक्सलवाद विरोधी अभियानों में भी लगे हुए हैं।
क़ानून-व्यवस्था को संभालने और आम चुनावों में संसद भवन राष्ट्रपति भवन परमाणु प्रक्षेपण, बंदरगाह,एयरपोर्ट, तेल रिफाइनरी भी बड़े पैमाने पर अर्धसैनिक बलों का इस्तेमाल किया जाता है।इन जगहों भी हर वक्त खतरा रहता है फिर भी कोई सम्मान नही है।
VIP सिक्योरिटी में भी मुख्यतौर पर अर्धसैनिक बलों के जवान ही होते हैं।
आपदाओं से निबटने के लिए बनाई गई NDRF में अर्धसैनिक बलों के जवानों को ही शामिल किया गया है।
आज़ादी के बाद से लेकर वर्ष 2017 तक देश के लिए शहीद होने वाले सैनिकों की संख्या 23 हज़ार 630 से ज़्यादा थी।
जबकि वर्ष 2015 तक, 53 वर्षों में देश के लिए, 31 हज़ार 895 अर्धसैनिक बल के जवान अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं।
2015-16 में केंद्र सरकार ने बजट में भारतीय सेना के लिए 1 लाख 24 हज़ार 337 करोड़ रुपये आबंटित किए थे….जबकि अर्धसैनिक बलों के लिए सिर्फ 38 हज़ार 331 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराई गई थी।
अगर सरकार कोई भेद भाव नही करती है तो सेनिकों के आगे अर्ध सैनिक का तमगा क्यों लगाती है सीमाय तय करे समान अधिकार दीजीये। आज न सरकारों के पास जवाब है न किसी के पास हिम्मत की सवाल उठा सकें मेरी यह आज की पोस्ट अपने तमाम फौजी भाइयों के नाम है उन के बच्चों के नाम है उन के घर परिवार के नाम है। जिन्हों ने देश के लिए हमारे लिए अपनी जान कुर्बान कर दिया उन को न हम न हमारी सरकार कोई सम्मान देती है।
देवेश आदमी ..