उत्तराखंड : शहादत देने वाले जवान के अंतिम शब्द ‘मां फायरिंग शुरू हो गई है, बाद में फोन करूंगा’
देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत देने वाले गंगोलीहाट के शंकर सिंह महरा की शहादत को नमन,
शहादत से पहले जवान के अंतिम शब्द ‘मां फायरिंग शुरू हो गई है, बाद में फोन करूंगा’ ये उनके अपनी मां से फोन पर कहे गए अंतिम शब्द थे। जब से अपने लाल की शहादत की खबर सुनी उसके बाद से शहीद की मां बदहवास है।
आपको बता दे की गंगोलीहाट के नाली गांव निवासी शंकर सिंह उम्र 31 साल पुत्र मोहन सिंह का जन्म पांच जनवरी 1989 को हुआ था। वे जीआईसी चहज से इंटरमीडिएट करने के बाद 23 मार्च 2010 को सेना की 21 कुमाऊं में भर्ती हुए थे। सात साल पहले उनका विवाह इंद्रा के साथ हुआ। अभी उनका छह साल का बेटा हर्षित है। एक साल पहले ही उन्होंने बेटे को स्कूल पढ़ाने के लिए हल्द्वानी में किराए पर कमरा लिया था। इस समय लॉकडाउन के कारण उनकी पत्नी और बेटा आजकल नाली गांव आए थे।
बताया जा रहा है वह प्रतिदिन अपनी पत्नी इंद्रा और मां जानकी देवी से बात करते थे।
उन्होंने शुक्रवार को दिन में भी उनका अपनी मां के लिए फोन आया था। उन्होंने इन दिनों सीमा पर गोलीबारी की घटनाएं बढ़ने की बात कही। फिर बात करते-करते उन्होंने कहा कि मां फायरिंग शुरू हो गई है बाद में फोन करूंगा। इसके बाद फोन कट गया। जानकी देवी ने फोन रख दिया।
शुक्रवार की देर शाम माता को यह दुखद समाचार नहीं सुनाया गया
शंकर सिंह जब सीमा पर शहीद हुए तो शुक्रवार की देर शाम को ही गांव में खबर पहुंच गई, लेकिन उनकी माता को यह दुखद समाचार नहीं सुनाया गया। शनिवार की सुबह जब गांव के लोग वहां पहुंचने लगे तो उन्हें कुछ अनहोनी की आशंका हुई। उन्होंने पूछा कि कहीं उनके शंकर के साथ कुछ हुआ तो नहीं। फिर जब बेटे की शहादत की खबर उन्हें दी गई तो वह गश खाकर गिर पड़ीं।
वो माँ तब से पूरी तरह से बदहवास हैं।
शंकर सिंह की पत्नी इंद्रा भी पति के शहीद होने की सूचना के बाद से बेसुध हैं। पिता मोहन सिंह खबर सुनने के बाद से गुमसुम हैं। बड़ी बहन मंजू भंडारी के भी शहीद की सूचना के बाद आंसू थम नहीं रहे हैं। शनिवार को बड़ी संख्या में लोगों ने शहीद के घर पहुंचकर सांत्वना दी।
शंकर सिंह के शहीद होने की खबर मिलने के बाद जहां माता-पिता, पत्नी सहित अन्य परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है, वहीं शहीद का मासूम बेटा हर्षित अपने पिता की शहादत से अंजान है। उसे यह भी पता नहीं कि अब उसके सिर पर पिता का साया नहीं रहा।
सीमा की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले शंकर सिंह का परिवार सैन्य पृष्ठभूमि का है। शहीद शंकर सिंह के दादा भवान सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा था। शंकर सिंह के पिता ने भी सेना को ही चुना और राष्ट्रीय राइफल में भर्ती हुए। देश सेवा के बाद उन्होंने वर्ष 1995 में सेवानिवृत्ति ली।
पिता और दादा के नक्शेकदम पर शंकर सिंह और उनके छोटे भाई नवीन सिंह ने भी देश सेवा को ही लक्ष्य बनाया। शंकर सिंह के छोटे भाई नवीन सिंह सात कुमाऊं में जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं।
शहीद शंकर सिंह जनवरी में छुट्टी पर घर आए थे। एक माह की छुट्टी पूरी करने के बाद ही फरवरी में यूनिट लौट गए थे।