प्रवासीयो को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
रेड जोन से आने वाले प्रत्येक प्रवासी को आवश्यक रूप से सीमा पर ही संस्थागत क्वारंटीन किया जाए ओर भी बहुत कुछ
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आज बुधवार को अन्य राज्यों से आ रहे प्रवासी उत्तराखंडियों को लेकर बड़ा आदेश दिया है। जी हा
उत्तराखंड हाईकोर्ट का आदेश, रेड जोन से आने वाले प्रवासियों को सीमा पर किया जाए क्वारंटी
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आज बुधवार को अन्य राज्यों से आ रहे प्रवासी उत्तराखंडियों को लेकर बड़ा आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने बाहरी क्षेत्रों से राज्य में आ रहे प्रवासी लोगों की थर्मल टेस्टिंग के साथ ही कोरोना रेपिड टेस्टिंग और एंटीजिंग टेस्टिंग की व्यवस्था करने के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई के बाद निर्देश दिए कि रेड जोन से उत्तराखंड आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यक रूप से बॉर्डर पर संस्थागत क्वारंटीन किया जाए।
आपको बता दे कि कोर्ट ने यह भी कहा कि कोरोना टेस्ट भी आवश्यक रूप से हो और इसकी रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद ही उन्हें उनके घर भेजें।
आज न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया व न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की खंडपीठ के समक्ष वीडियो कांफ्रेसिग के माध्यम से मामले की सुनवाई हुई।
बता दे कि हरिद्वार निवासी ने सचिदानन्द डबराल ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कोरोना वायरस से बचाव के लिए घोषित लॉकडाउन के दौरान प्रभावित लोंगों की मदद करने की मांग की थी।
इससे संबंधित विभिन्न अन्य जनहित याचिकाओं पर संयुक्त रूप से सुनवाई हुई
। पूर्व में सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि उत्तराखंड में अन्य राज्यों के लगभग 40 हजार मजदूर हैं। जबकि लगभग दो लाख उत्तराखंड के लोग अन्य राज्यों में फंसे हैं जो उत्तराखंड आना चाह रहे हैं।
संबंधित लोगों ने उत्तराखंड आने के लिए पंजीकरण भी कराया है। सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि बाहरी राज्यों से आने वाले प्रवासियों की जांच व देखभाल के लिए राज्य सरकार ने 49 राहत कैंप लगाए गए हैं, जिनमें जांच की जा रही है। इसके बाद न्यायालय ने रिलीफ कैंप के लिए कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति की थी। मामले में अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी
आपको बता दे कि हजार मुश्किलों का सामना कर वापस लौट रहे प्रवासियों को अपने उत्तराखंड में अपने गाँव मैं ही कई जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है जिसके पीछे कोरोना संक्रमण को लेकर उपजा डर है। ओर गांवों के स्तर पर सुविधाओं का अभाव भी इस समय गाँव के डर को बढ़ा रहा है।
आपको बता दे कि लॉकडाउन शुरू होने के साथ ही सोशल मीडिया में ठेठ गढ़वाली में ऐसे वीडियो तैरने लगे थे। जिनमें महिलाएं प्रवासियों को वापस न आने की हिदायत दे रहीं थी
प्रदेश में ग्राम प्रधानों को कहना न मानने वालों के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार देने की घोषणा कर सरकार ने इसी डर को ओर हवा दी।
जानकार कहते है कि
ऐसे में अब गांवों में भी कोरोना संक्रमण को लेकर डर है। एक ग्राम प्रधान के मुताबिक बाहर से आने वाले किस व्यक्ति को कोरोना है और किसको नहीं, इसकी जांच की पुख्ता व्यवस्था नहीं है। ऐसे में गांव वाले हर आने वाले को भी शक की निगाह से देख रहे हैं।
ओर फिर गांवों में सुविधाओं का न होना भी इस डर को बढ़ा रहा है। वहीं पंचायत अधिकार मंच के संयोजक जोत सिंह बिष्ट के मुताबिक गांव और शहर के फर्क को समझना चाहिए। गांव में नहाने और अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए हर व्यक्ति के लिए अलग व्यवस्था नहीं होती। एक ही स्नान घर का उपयोग पूरा परिवार करता है।
ऐसे में किसी को होम क्वारंटाइन किया भी जाए, तो पूरे परिवार पर संक्रमण का खतरा रहता है। दूसरा गांव में सामुदायिक स्तर पर क्वांरटीन करने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। कई जगह पंचायत घर कुछ ही लोगों के रहने लायक हैं। कई स्कूलों की हालत पहले से ही खराब हैं।
आपको बता दे कि त्रिवेंद्र सरकार की ओर से लगभग 25 हजार प्रवासियों के संक्रमित होने की आशंका जताए जाने का डर भी गांवों पर असर पड़ा है।
माना जा रहा है कि अधिकतर प्रवासी संक्रमित हैं और उपचार की सुविधा शहरों तक में नहीं हैं तो फिर गांवों की तो बात ही क्या की जाए। ये गाँव के लोगो का कहना है
वही ग्राम प्रधानों को सरकार ने कहा कि मुख्यमंत्री राहत कोष से दस-दस हजार रुपये दिए जाएंगे। इसी तरह संसदीय कार्यमंत्री ने भी कहा कि ग्राम प्रधानों को पैसा दिया जा रहा है। ग्राम प्रधानों का कहना है कि उन्हें अलग से कोई फंड नहीं मिला। ऐसे में प्रधानों को अब गांव के लोगों की नाराजगी का निशाना भी बनना पड़ रहा है। लोगों की शिकायत है कि प्रधान पैसा खर्च नहीं कर रहे हैं बहराल देखते है क्या होता है आगे आगे