देहरादून: हाल ही में तथ्यहीन और बेसिर पैर चर्चाओं से राजनीतिक बाज़ार गर्म रहा है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को पद से हटाने के तमाम षड्यंत्र रचे जा चुके है और षड्यंत्रकारी अभी भी अपने षड्यंत्रओ से बाज नहीं आ रहे। लगातार त्रिवेंद्र पर निशाना साधते हुए उनके खिलाफ एकजुट हो जाते हैं। लेकिन इन सब के विपरीत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सरल और स्पष्टवादी विचारधारा वाले व्यक्तित्व हैं, उन्हें अपनी कुर्सी का लोभ नहीं है, उनके लिए जनसेवा और उनकी कार्यशक्ति उनकी कुर्सी से कई ऊंचा स्थान रखती है, लगातार अफवाहों के बावजूद भी त्रिवेंद्र ने दोबारा गैरसैंण के लिए प्रस्थान किया। त्रिवेंद्र के लिए आम जनता की कुशलता सर्वप्रिय है और रहेगी। लेकिन त्रिवेंद्र से ज्यादा कुर्सी की चिंता विरोधियों को सता रही है, पर विरोधियों को यहां डर सताना लाजमी भी है क्योंकि त्रिवेंद्र सरकार ही उत्तराखंड में मजबूत नेतृत्व दे सकती है, तभी तो इसी के चलते त्रिवेंद्र के खिलाफ अफवाहों का बवंडर बना रहे हैं, लेकिन हासिल कुछ नहीं कर पाए।
ये उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि एक छोटा सा राज्य, जिसमे अभी कई विकास कार्यों को किया जाना है, लेकिन हर बार हर सरकार में ये खबरें और घटनाये होती हैं। इससे पता चलता है कि ना तो उत्तराखंड के नेताओं को, न ही राष्ट्रीय पार्टियों को यहां के लोगों से कोई सरोकार है। उत्तराखंड पर्यटन नगरी और देवनगरी के नाम से कम, आज के वक्त में बदलते मुख्यमंत्री के नाम से ज्यादा चर्चित है। हमारे राज्य में जापान की बुलेट ट्रेन से तेज मुख्यमंत्री बदलने की रफ़्तार है। उत्तराखंड को मज़ाक बना दिया है।