ख़बर है कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने सुनील गामा को मेयर का टिकट देकर दिवाली से पहले एक जुवा खेल दिया है । क्योकि राजनीति के चाणक्य कह रहे है कि गामा बीजेपी का हल्का चेहरा है और सिर्फ सीएम की जींद पर ही गामा का टिकट तय हुआ है । क्योकि बीजेपी के सभी बड़े नेताओं की पसंद अनिल गोयल थे। पर यहा पर सीएम की चली और उन्होंने गामा पर बड़ा दाव खेल दिया । जो खुद बीजेपी के कही नेताओ को राज़ नही आ रहा है ।जिसके कही कारण है ।जिनमे सबसे बड़ा कारण गामा का अपना खुद का वोट बैंक ना होना। उसके बाद आजतक गामा ने किया क्या। देहरादून के किसी भी मामले मे गामा का कोई रोल रहा ही नही । तीसरी बात गामा का पिछला इतिहास कुछ खास नही गामा ने आज तक किस पहाड़ी की मदद की या किस बनिये का साथ दिया । गामा का खुद का विजन दूंन के लिए क्या। ये तमाम सवाल ओर बाते देहरादून की जनता आज सुबह से ही बोलती नज़र आ रही है । चाय की दुकान से लेकर , पान वाले कि दुकान तक ये चर्चा चल रही थी । तो कुछ बीजेपी के लोग ये कह रहे है कि अब बनिया सामाज ओर देहरादून का व्यापारी वर्ग दिनेश अग्रवाल के साथ खड़ा है। यहा तक कि गढ़वाली भी । क्योकि दिनेश अग्रवाल की अपनी खुद की पहचान ओर अपना अलग वोट बैंक है । जो गामा पर भारी पड़ेगा। इस निकाय चुनाव मे कोई लहर किसी की भी नही चलने वाली । इसके साथ ही कुछ बीजेपी के लोगो का कहना है कि गामा को चुनाव मे पेलने का काम खुद बीजेपी के लोग अंदरखाने करेगे। क्योकि गामा सबकी समझ ओर विचार पर फिट नही बैठता । ये सब बातें सड़क पर अब आम लोग कहते सुनाई दे रहे है। तो खूफिया लोगो के सर्वे में भी गामा कमजोर नज़र आ रहे है ।इसके साथ ही हाल ही मैं चला अतिक्रमण हटाओ अभियान से भी बीजेपी को नुकसान जतया जा रहा है । तो उधर सरकारी कर्मचारी वेतन भत्ते को लेकर नाराज़ चल रहे है ।
सीएम त्रिवेन्द्र रावत ने गामा पड़ बड़ा दाव खेला है इसलिए ये सीएम की भी अग्नि परीक्षा है, तो सीएम के राजनीतिक विरोधी भी अब गामा को अंदर खाने इस चुनाव में पेलने का मन बना चुके है क्योकि वो हर हाल में सीएम के इस फैसले को गलत साबित करना चाहते है ताकि हाईकमान का त्रिवेन्द्र से मोह भंग हो और उनका काम बने । कुल मिलाकर गामा से मज़बूत ओर दमदार चेहरा बीजेपी के पास देहरादून में था जिन्होंने आवेदन भी किया था पर सीएम के आगे पीछे घूमने वाले गामा को ही मेयर का टिकट मिला बीजेपी ने ही उनको उम्मीदवार बनाया ऐसे मे अब देखना ये होगा कि गामा को क्या जनता अपने मेयर के रूप में पसन्द करेगी । क्या सीएम त्रिवेन्द्र रावत गामा को मेयर की कुर्सी तक पहुचा पायेगे। या फिर सरकार का ये फैसला जनंता को पसंद आये या नही ये समय तय करेगा। बहराल अभी देहरादून की बात करे तो मेयर की कुर्सी पर जनता ने 10 साल बीजेपी को ही दिए विनोद चमोली को । क्या हुवा क्या नही वो अब सामने सबके है ।
बोलता उतराखंड की सुुभकामनाये सुनील गामा जी को
आम पार्टी का दामन थामते ही पूर्व दायित्वधारी रजनी रावत ने भाजपा और कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि आप के संस्थापक सदस्य अरविंद केजरीवाल ने उनके हाथ में झाड़ू पकड़ाकर देहरादून नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार की सफाई का जिम्मा उन्हें सौंपा है।
जानकार कहते है कि रजनी बिगाड़ सकती हैं कांग्रेस-भाजपा का समीकरण
आपको बता दे कि रजनी रावत के लगातार तीसरी बार महापौर पद पर दावेदारी से भाजपा और कांग्रेस के समीकरण बिगड़ सकते हैं। वर्ष 2008 व 2013 के नगर निगम चुनावों में रजनी रावत अपनी दमदार उपस्थिति से दोनों पार्टियों को कड़ी टक्कर दे चुकी हैं। वर्ष 2008 के नगर निगम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे विनोद चमोली को 60867 मत पड़े थे। जबकि, रजनी रावत 44294 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रही थीं।
वहीं कांग्रेस प्रत्याशी रहे सूरत सिंह नेगी को 40643 मतों पर संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2013 के चुनाव में बीजेपी से महापौर पद के प्रत्याशी रहे विनोद चमोली को 80530 मत मिले, जबकि कांग्रेस के सूर्यकांत धस्माना को 57618 मत प्राप्त हुए थे। वहीं रजनी रावत 47589 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रही थीं। लेकिन, रजनी रावत की उपस्थिति से कांग्रेस को खासा नुकसान हुआ था। इस बार भी रजनी रावत के मैदान में उतरने के बाद कांग्रेस-भाजपा के वरिष्ठ नेता कुछ भी बोलने से कतरा रहे है.। तो वही बीजेपी ने सुनील गामा को अपना देहरादून मेयर पद का उम्मीदवार बनाया है ।, इस लिहाज़ से जिस तरह से रजनी रावत लगातार दो बार चुनाव लड़ चुकी है और वोट भी उनको अच्छा खासा मिला है उस हिसाब से रजनी बीजेपी के सुनील गामा पर भारी पड़ सकती है। गामा अगर गढ़वाली वोटो को को अपना समझते है तो रजनी भी रावत है ।ये गामा को या बीजेपी को समझना होगा। क्योकि वोट तो रजनी रावत के अपने खुद के भी है और आप पार्टी से टिकट लेकर वो ओर मजबूत हो गई है । दूसरी तरफ जानकारी अनुसार पूर्व मंत्री दिनेश अग्रवाल मजूबत चेहरा है कांग्रेस के पास मेयर पद के लिए बस औपचारिक ऐलान के बाद दिनेश अग्रवाल , भी बीजेपी के गामा पर भारी रहेगे क्योकि दिनेश अग्रवाल का अनुभव काफी है ।और जनता के बीच पहचान भी ।इस लिहाज से बीजेपी के गामा को सिर्फ पार्टी के वोट बैंक के सहारे ही रहना पड़ेगा। अगर कोई लहर चली तो ही गामा कुछ चमत्कार कर पायेंगे ओर बिना लहर के तो गामा के भी पसीने छुटने तय है। माना जा रहा था कि अनिल गोयल को टिकट मिलेगा पर ये हुवा नही क्योकि विनोद चमोली के बाद अनिल गोयल ही मजबूत उम्मीदवार थे बीजेपी के पास खेर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ओर अध्यक्ष अजय भट्ट की सिफारिश पर गामा का सलकेशन हुवा है इसलिए गामा को जीता कर लाना ओर मेयर बनाना मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के लिए भी अग्नि परीक्षा है । बहराल देखते है आगे क्या समीकरण ओर बनते है पर अगर बीजेपी ये सोच रही है कि गढ़वाली वोट बैंक गामा पर आयेगा ।