‘जिंदगी में अगर कुछ सबसे ज्यादा इंपॉर्टेन्ट है तो वो है खुद की जिंदगी’…फ़िल्म छिछोरे का यह डायलॉग आज भी मेरे कानों में गूंज रहा है। लेकिन सुशांत तुम्हें असल जिंदगी में यह डायलॉग क्यों नहीं याद आया…। ‘हम हार जीत, सक्सेस फेल्योर में इतना उलझ गए हैं कि जिंदगी जीना भूल गए हैं…सुशांत तुमने तो जिंदगी जीना नहीं बल्कि जिंदगी से हमेशा हमेशा के लिए मुँह मोड़ लिया…। कारण जो भी हो, लेकिन जिंदगी से इस तरह हार मानना समस्या का हल नही है…। न ही तुम्हारे ऐसा करने से समस्या का समाधान हो गया…।
तुम्हारी फ़िल्म छिछोरे देखी थी, उसका कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा लगा। ‘दूसरों से हारकर लूजर कहलाने से कहीं ज्यादा बुरा है, खुद से हारकर लूजर कहलाना…।’ लेकिन तुमने रील लाइफ के दिखाए इस कांसेप्ट को रियल लाइफ में फॉलो नहीं किया…।
सक्सेस के बाद का प्लान सबके पास है, लेकिन अगर गलती से फेल हो गए तो फेल्योर से कैसे डील करना है, इसकी कोई बात ही नहीं करना चाहता है। बात बिल्कुल सही है हमारे समाज में फेल्योर को लेकर कोई प्लान नहीं होता…। सुशांत तुम जिस भी इम्तिहान में फेल हुए लेकिन एक बात तो तय है कि तुमने भी फेल्योर को प्लान नहीं किया…।
यह बात भी दिमाग में रखनी चाहिए कि ‘तुम्हारा रिजल्ट डिसाइड नहीं करता है कि तुम लूजर हो कि नहीं, तुम्हारी कोशिश डिसाइड करती है…।’ लेकिन सुशांत तुमने आत्महत्या को गले लगाकर अपने जीवन को ही लूज़ कर दिया…
सुशांत का शव बांद्रा स्थित फ्लैट पर रविवार को मिला, उनके गले पर निशान मिले हैं; कोई सुसाइड नोट नहीं मिला
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कमरे का दरवाजा नहीं खुलने पर सुशांत की बहन को बुलाया गया, उनके सामने बॉडी उतारी गई
सुशांत 6 महीने से डिप्रेशन का इलाज करवा रहे थे, उनकी पूर्व मैनेजर दिशा ने भी 8 जून को खुदकुशी कर ली थी